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फ्लैश का खेल जम रहा था।उस शाम क्लब में मिस्टर मुखर्जी खूब आक्रामक मूड में आए थे।क्लब में उनके साथ थे मिस्टर अली एंड मिस्टर भाटिया।खेल में काउल  हार रहे थे।  मुखर्जी के मन में कई दिनों से काउल पर क्रोध आ रहा था।काउल की उपेक्षा हमेशा मुखर्जी की मान-मर्यादा पर चोट पहुंचा रही थी।फिर एक मामूली व्यापारी के अहंकार को बर्दाश्त करना उनकी शक्ति का अपमान था।उसके ऊपर मिस नीना के मुंह से उनकी तारीफ वह सहन नहीं कर पाते थे।आज बदला लेने का मौका मिल ही गया।
मिस्टर काउल!जितना समझते हो,जीतना उतना आसान नहीं है।यहां मिस्टर रा नहीं है,जिसे तुम ठग सकते हो।आज पराजय में सब-कुछ लुटा बैठोगे।बेहतर होगा,अपनी भलाई के लिए पीछे हट जाओ।” मुखर्जी ने दम्भ भरे स्वर में कहा।
काउल का मन ताश के पत्ते  में था। इसलिए वह ठीक से समझ नहीं पाए कि किसने क्या कहा।  काउल ने जवाब दिया,“काउल लुटा देगा सब-कुछ,मगर हारेगा नहीं।हां,हार-जीत का मतलब हर आदमी के लिए अलग-अलग होता है।”
मुखर्जी ऐसे अवज्ञा भरे उत्तर को सुनने के लिए तैयार नहीं थे।उनकी धमनियों में पुलिस-वंश का खून बह रहा था।कठोर स्वर में जवाब दिया,राजनीति किए बिना भी चाबाजी में उस्ताद
लगते हो।”
काउल  ने कहा,औरों की तरह चालबाजी की जा सकती है।और जो लोग राजनीति नहीं कर सकते,चाहूं तो मैं वह भी कर सकता हूं।”
मुखर्जी साहब ने कहा,इच्छा अगर घोड़ा होती तो कितने ही भिखमंगे उस पर चढ़कर घूमते फिरते।अगर इतना घमंड है तो दिखाओ अपनी मर्दानगी।”
मिस्टर  काउल ने स्टेप दुगुना आकर दिए।टेबल पर पैसे फेंककर व्यंग्य से मिस्टर मुखर्जी की ओर देखकर कहने लगे, “ मिस्टर मुखर्जी! काम में व्यस्त होने के कारण मैं अखबार नहीं पढ़ पाता हूँ।अगर कभी राजनीति का मौका मिलता है तो खबर करना, मैं अपनी मर्दानगी दिखा दूंगा।”
मिस्टर भाटिया ने कहा,निरक्षरों को साक्षर करने का काम मुखर्जी का नहीं है।उनका दायित्व शांति-कानून व्यवस्था की रक्षा करना है।चाहो तो,अगले महीने नगर निगम का चुनाव होने वाला है।एक नेता बन जाइए न,अपनी मर्दानगी का प्रमाण मिल जाएगा।”
खुशामदी स्वर में मिस्टर अली ने कहा,“डिपोजिट रखने में कोई दिक्कत हो तो हमें कहना।  हमारे घर में तीस लोग हैं।दोस्त की इज्जत के खातिर सहायता करने में हम लोग संकोच नहीं करेंगे।”
ताश के पत्ते उठे। काउल फिर हार गए।
अगली बार ताश के पत्ते बांटते समय मुखर्जी ने कहा, “खबर तो मिल गई,चुप क्यों हो?”

काउल ने निर्विकार भाव से मुखर्जी की तरफ देखते हुए कहा,“ अगर मैं नगर निगम का चेयरमैन बन गया तो आपको कोई दिक्कत तो नहीं होगी?चेयरमैन के पास बहुत से अधिकार-कानून पुलिस पर अंकुश रखने के लिए है।”
क्रोध से लाल हो गए मुखर्जी।क्या जवाब देंगे,सोच नहीं पा रहे थे।लोग ऊंची आवाज में हंसने लगे।भाटिया और अली ने भी उनका साथ दिया।
काउल  ने कहा, “तो फिर यह खेल का आख़िरी राउंड है।अगर मैं हारा तो दस हजार दूंगा और चेयरमैन चुनकर आ गया तो मुखर्जी आप दस हाजर देंगे।”भाटिया ने बीच में बात काटकर चिल्ला उठे, “उनको देने की कोई जरुरत नहीं है।उनकी तरफ से मैं दूंगा दस हजार।”
भाटिया का पूरे राज्य में शराब का कारोबार चलता है।अली ने कहा,“चेयरमैन पद के लिए पंद्रह हजार होने चाहिए,काउल साहब!दस हजार तो मेम्बर के लिए है।”मिस्टर अली लोहे के व्यापारी है।
 काउल  ने कहा,“अली साहब,आपकी हिम्मत की दाद देता हूँ।मगर एक शर्त है,मेरी जीत की अगली रात आप यहां रिसेप्शन पार्टी की व्यवस्था करेंगे।मिस नीरा को पहले से ही खबर देनी होगी ताकि वह समय निकालकर शाम को आ जाएँ।”
मुखर्जी,भाटिया और अली सभी काउल की ओर देखने लगे।सब के चेहरों में काउल के प्रति घृणा के भाव थे।क्रोध से भरी यह जनमंडली उस दिन शाम को अपने-अपने घर चली गई ।काउल अपनी कोठरी पर लौट आए।
अगले चुनाव में चेयरमैन होना है तो गाड़ी में जाते समय लड़ाई की योजना तय कर ली।  समय बचा था एक महीना।घर पहुंचकर अपने क्षेत्र के सभी अफसरों के मुंशियों को फोनोग्राम किया।अन्य शहरों के अधिकारियों और प्रबन्धकों को टेलीफोन किया।अपने एजें और कुछ मित्रों को बुलवाया। नीना और उनकी सहेलियों को खबर दी गई।

दो दिन बाद उनके ड्राइंग रूम में एक छोटी-मोटी बैठक का आयोजन किया गया।उनके वार्ड के वोटरों का सर्वे किया गया।वोटरों को धर्म,गोष्ठी,आर्थिक हाल के आधार पर विभिन्न भागों में बांटा गया।पोस्टर और टेंपलेट आदि तय किए।काउल ने नॉमिनेशन फाइल किया। उनके नाम का शहर के सबसे बड़े वकील ने प्रस्ताव दिया,जिसका समर्थन शहर के नामी डॉक्टर ने किया।हर सौ आदमियों के पीछे एक कार्यकर्ता रखा गया।देश भर के उनके कर्मचारी,एजेंट मित्र वगैरह सब एक हुए।लिखा गया कि इस वार्ड में सात सड़कें,पांच अपर प्राइमरी स्कूल खोले जाएंगे। धार्मिक बुजुर्गो के लिए मंदिर की मरम्मत की जाएगी। युवकों के मिलने-जुलने के लिए क्लब खोले जाएंगे।हर रास्ते पर बिजली दी जाएगी।हर चौराहे के पास नल लगेगा।  हर घर में पाइप जाएगा।सब तय कर दिया गया।केवल एक चीज तय नहीं हुई।वह था खर्च।
काउल ने कहा,आवश्यकता पड़ने पर पैसे की कोई सीमा नहीं रखी जाएगी।जरूरत ही उसकी सीमा तय करेगी।कोई भी कार्यकर्ता निसंकोच अपने कार्य की जरूरत के मुताबिक पैसा ले सकेगा।


चुनाव में काउल का मुकाबला शुक्लकेश सौम्यकांत पंडित जी से था।भारतीय इतिहास ने उनके शरीर पर असंख्य क्षत-विक्षत चिन्ह छोड़े हैं।ललाट की गहरी रेखाएँ इस बात का  प्रमाण है।बचपन में उन्होंने वानर सेना तैयार की थी,सत्याग्रह किया था।जब और लोग मां- बाप की गोद में खेला करते थे,पंडितजी ने उस समय से सत्याग्रह मंडली में भाग लिया था।  वंदे मातरम का नारा देकर नमक सत्याग्रह के जमाने में जेल में गए थे।उन दिनों उनकी नवविवाहिता पत्नी ने महामारी में दम तोड़ दिया।उन्होंने अनगिनत लाठियां की मार खाई थी।उनकी पीठ पर आज भी उसके दाग मौजूद थे।बीच-बीच में बच्चो को गांधीजी के चरित्र का उदाहरण देते हुए प्रमाण-स्वरूप अपने दाग भी दिखाकर उन्हें याद करा देते थे भारत की स्वाधीनता आंदोलन का गौरवमयी इतिहास।सन 1942 के आंदोलन के दिनों में उनका बेटा बीमार था।जेल में उन्हें पता चला कि वह इस इहलोक त्याग चुका है।दुनिया में वह परिवारहीन,निर्धन और एकाकी है। 

पहनने के नाम पर केवल एक छोटी धोती और एक चादर। उनके लिए जीवन में औरों की सेवा के अलावा कोई उद्देश्य नहीं था।जब कभी नदी का बांध टूटने की आशंका होती तो सारी रात पंडितजी वहीं बैठकर निगरानी करेंगे।अगर कहीं से महामारी का प्रकोप होगा तो पंडितजी अपने जीवन की कुर्बानी कर देंगे।किसी पर विपदा आने पर सारी रात उसकी शय्या के पास बैठे रहेंगे।उन्होंने जीवन में जो कुछ सीखा,उससे उनके लिए घर-संसार बसाकर चैन से रहना मुश्किल न था।कोई भी बात कहता तो जवाब देते हैं, वही जो आश्रम में गांधी जी को दिया था।आज गांधीजी इस दुनिया से चले गए तो क्या है प्रतिज्ञा तोड़ दे।उनकी आत्मा को दुख नहीं होगा।

काउल ने कई बार अपने प्रतिद्वंद्वी पंडित जी को देखा।
 काउल चुनाव सभाओं में कहते,“यह सत्याग्रह का जमाना नहीं है।अब योजना का जमाना है।  अब पीठ पर चाबुक के दाग जनप्रतिनिधि की योग्यता नहीं रह गई। दक्षता ही इस युग की कसौटी है।किसी आदमी के लिए आंसू बहाकर एंबुलेंस में साथ जाना जनप्रतिनिधि का कर्तव्य नहीं है।प्रतिनिधि को तो सारे समाज को देखना होगा,समुचित समाज की बीमारी देखनी है।  सबके सुख-दुख का ख्याल रखना होगा।व्यक्तिगत उपकार की बजाय सामूहिक उन्नति की चिंता करनी होगी।”
बीच-बीच में काउल पंडितजी को गाड़ी में बिठा कर सभाओं में ले जाते थे।दोनों प्रतिद्वंद्वी  आमने-सामने होते।काउल भाषण के बहाने चुनौती देते हुए कहते,“बताइए,पंडितजी,आप प्रतिनिधि चुने गए तो क्या कर पाएंगे?मैं बना तो रास्ता ठीक करवा दूंगा,स्कूल..... उसकी कीमत होगी लगभग तीस हजार रुपए।इस धन राशि का चेक मैं अभी दे रहा हूं।अगर कौंसिल नहीं करेगी तो मैं समूहिक उन्नति पर ध्यान दूंगाअस्पताल जाना नहीं पड़ेगा।बच्चे मूर्ख नहीं रहेंगे।कोई बेरोजगार नहीं रहेगा।किसी नौकरी नहीं मिली तो मैं अपने अनुष्ठानों में उन्हें नौकरी देने की व्यवस्था करूंगा।”
काउल के लिए असंख्य कार्यकर्ताओं की कतार लग गई।ज़ोर-शोर से प्रचार होने लगा।काउल  ने कहा,“इस नगर निगम के जरिए जो संभव हो सकेगा,मैं वह सब-कुछ करने को तैयार हूं।  आप मुझे वोट देंगे तो मैं हर समस्या का समाधान कर दूंगा।”
सभा में उपस्थित लोगों के सामने काउल ने पूछा,पंडितजी बता, वर्तमान समय में आप क्या कर सकेंगे?”पंडितजी चुप रहे, सभा की जनता भी चुप रही।  

वोट पड़े।काउल की चुनाव में जबरदस्त जीत हुई।काउल की कोठी पर लोगों का तांता बंधा । चारों तरफ से बधाई के संदेशों का दौर शुरू हो गया।
चुनाव के बाद विभिन्न दल के नेताओं और विशिष्ट कार्यकर्ताओं को उन्होंने अपने घर पर आमंत्रित किया।एक साथ नहीं,हर को एक-एककर आमंत्रित किया। प्रतिनिधियों ने काउल  की नई जिंदगी का समर्थन कियाकिसी ने कहा,वर्तमान में देश को आपके जैसे उत्साही युवक का इंतजार  है।राष्ट्रीय जीवन आपकी सहायता और सहयोग से ही पुष्ट होगा।”
काउल ने सभी सदस्यों के आगे आश्वासन दिया।किसी के बेटे की कॉलेज में पढाने में मदद की। किसी के भाई को अपने व्यवसाय में लगाया।किसी की बेटी के विवाह के लिए काउल ने यथासंभव सहयोग किया।काउल ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल क्यों न हो,आज की स्थिति में नगर निगम में दलगत राजनीति उचित नहीं है।नगर निगम का चेयरमैन निर्दलीय आदमी होना उचित है।काउल की बातों से उन नेताओं की भविष्य के प्रति आशा जगाई।

आखिर चेयरमैन के चुनाव का दिन आ गया।चारों ओर से काउंसिल में गणतंत्र को बचाने के लिए दलीय राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की मांग हुई।निर्दलीय व्यक्ति को चेयरमैन के पद पर बैठाया जाए।काउल निर्दलीय है अतः उन्हे चेयरमैन बनाया जाए।दल के सदस्यों ने कहा, काउल हमारे निर्देशों के अनुसार चलेंगे,क्योंकि उनके पीछे कोई खास दल नहीं है! जनता के प्रतिनिधियों की मांग को काउल ने सिर झुकाकर स्वीकार किया और चेयरमैन के पद पर अधिष्ठित हो गए।काउल की योग्यता पर विचार कर विरोधियों ने अपना नाम वापस ले लिया।हालांकि काउल के बैंक बैलेंस में केवल पाँच हजार का फर्क पड़ा।

उस क्लब की शाम को गुजरे हुए महीने से ज्यादा हो चुका था,काउल एक बार भी क्लब नहीं आ सके थे।उन्होंने वहां देखा तो क्लब में मुखर्जी नहीं थे।उनकी तबीयत खराब थी।जरूरी काम से मिस्टर अली भी शहर छोड़कर बाहर चले गए थे।मिस्टर भाटिया शाम को अपनी बीमार मां की सेवा में व्यस्त थे।केवल नीना अपने कुछ मित्रों के साथ वहाँ मौजूद थी।

“नीना! अगर मैं सम्राट होता तो आज तुम इस शहर की साम्राज्ञी होती।तुम्हारी मदद की एवज मैं और क्या दे सकता था, कहो?”

मिस नीना अपने होठों पर जीभ फेरने लगी। कहने लगी,चेयरमैन बनने में तो कोई रुकावट नहीं हुई?”
नीना,आज मेरे साथ चलो।विजयी शाम एक साथ बिताएंगे।कल से बड़ा दायित्व मिलेगा। शहर में बहुत बड़ी अभिनंदन सभा का आयोजन होगामगर तुम्हें तो रहना होगा।कितने लोग, कितना स्वागत,कितने पुष्पहार .... तुम्हारे बिना कौन ग्रहण करेगा? नीना,मैं बहुत स्वार्थी हूं।  यहां तक कि कुछ भी तुम्हारे लिए छोड़ने को तैयार नहीं हूँ।”

फिर दोनों गाड़ी में निकल पड़े।रात बिताकर अपने-अपने घर लौटे।

तीसरे दिन की शाम।काउल  के स्वागत में भव्य पांडाल सजाया गया।पांडाल के सारे खंभे लाल-पीले कपड़ों में लिपटे हुए सुहावने दिख रहे थे।बीच-बीच में रंग-बिरंगे कपड़ों से मंच सजाया गया।पांडाल के बीच एक आकर्षक स्तम्भ पर नीली रोशनी की माला चारों तरफ लगी हुई थी।हर खंभे पर दो-तीन नियोन लाइट लगी हुई थी।

व्यापारी कहने लगे, काउल के कारण आज हमें समाज में प्रतिष्ठा मिली है।हमें छोटा समझने वाले अब ठिकाने पर आएंगे। गरीबों ने कहा, लखपति आज राजा बना।हमारे शहर में और  दुख-दर्द नहीं रहेगा।राजनीतिक नेता कहने लगे,इस आदमी के पीछे कोई समर्थन नहीं है।हमारे हाथ उठाने का इंतजार करते रहेगा।अब शुरू होगा, “कठपुतली का नाच”।जो हम चाहेंगे, इसके जरिए किया जाएगा।उधर बुद्धिजीवी कहने लगे,आज यह जो नई घटना घटी,इससे लगता है कि हमारे समाज में परिवर्तन आया है।यह विवर्तनवाद का अपरिवर्तनीय नियम है।  आजतक जितने नेताओं के शासन किया,वे सब जमींदार वर्ग के थे।आधुनिक समाज को पूंजीवादी दल ने नियंत्रित कर लिया है। नेतृत्व में परिवर्तन आ रहा है।इसके बाद,समाज पर साम्यवादी लोगों का शासन होगा।विवर्तनवाद की जीत अवश्यंभावी है।
 तालियों की गड़गड़ाहट,उत्साह,नारों के बीच काउल पंडाल पर पधारें।सारे जनसमूह को हाथ जोड़कर नमस्कार करते रहे।इतनी विराट जनता,इतनी आत्मीयता को देखकर काउल भाव-विह्वल हो गए।फिर वह अपने आसन पर जाकर विराजमान हो गए।
पंडितजी नगर वासियों की तरफ से भाषण देने के लिए खड़े हुए।अपने साधारण परिधान में।  अपने ऐतिहासिक क्षत-विक्षत काया से माइक्रोफोन के सामने खड़े होकर काउल की योग्यता का गुणगान करने लगे।
कहने लगे, ब व्यक्तिगत सेवा के दिन लद गए है।आज सामूहिक हित की चिंता चल रही है। आज त्याग का युग नहीं है - योजना का युग आ गया है।मनुष्य चाहता है कि बीमारी न रहे,बेरोजगारी दूर हो,नदी के तीर पर रात को नींदे रहकर काम करने की कोई जरूरत न पड़े।

पंडितजी अपने आप के विरुद्ध बयान देते रहे।काउल के चुनाव प्रचार और उनके राजनीतिक जीवन के प्रारंभिक विजय का ओजस्वी भाषा में स्वागत किया।

जनता ने उनकी जय-जयकार की।पंडितजी ने काउल के चरित्र और सज्जनता पर प्रकाश डाला।किस तरह बचपन से ऐश्वर्य के साथ जीवन-यापन करते हुए राजनीति को धूल के समान हेय नहीं समझा,बल्कि साधारण आदमी की तरह रास्ते में घूम-घूमकर लोगों की भलाई के काम में लगे।पंडितजी ने काउल के गौरवमय शैशव और आधुनिक विचारधारा पर प्रकाश डाला।

काउल ने उनका सारा भाषण सुना।नीना की ओर झुककर कहा,“नीना,मुझे कैसा लगता है जानती हो!यह मेरा मजाक उड़ाया जा रहा है।यह मेरा अपमान है।यह सब भ्रम है।”

पंडितजी समझाते जा रहे थे,“इतनी कम उम्र में आपने अपने धर्म,कर्तव्यपरायणता और माता-पिता के आशीर्वाद से अपने व्यवसाय का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया है।भागीरथ की तरह सुख समृद्धि की मंदाकनी हमारे छोटे-से शहर में लाएँगे।”

काउल नीना को समझा रहे थे,“नीना! मैं धार्मिक,साधु और चरित्रवान! इन बातों का विरोध जरूरी है।यह सब झूठ है।”

 पंडितजी कहते गए,“आज मैंने अपने हाथों से एक छोटा-सा फूलों की माला गूँथी है।भले ही यह सुंदर न हो,मगर सत्य है।मैं हार्दिक शुभकामनाओं सहित यह माला भेंट  करता हूँ।यह   नवजीवन उनके लिए मंगलमय हो,यशस्वी हो।यह मेरे जीवन के आखिरी दिनों का उनके लिए आशीर्वाद है।”

भाषण पूराकर पंडितजी ने माला काउल  के गले में पहना दी।तालियों की गड़गड़ाहट से सभा-स्थल गूंज उठा।

उसी धारा-प्रवाह में एक के बाद एक वक्ता,नेता भाषण देते गए।काउल अपने गौरवशाली अतीत,दृढ़-चरित्र,साधुता,सद्भाव और धर्मपरायणता इत्यादि का गुणगान उनके मुख से सुनते जा रहे थे।  

“नीना,यह झूठ है।यह छल है।इसका खंडन आवश्यक है।नहीं तो समाज नष्ट हो जाएगा ,आदमी टूट जाएगा,आदमी का विश्वास खत्म हो जाएगा।पूजनीय आदमियों का सम्मान होना चाहिए।इनकी नजरों में जो निंदनीय कार्य है,उनका मुखौटा हटाना उचित है।नहीं तो यह धोखा-छल होगा।”  

नीना ने कहा,“काउल,ये सारी बातें सही है,मगर इसका प्रतिवाद कौन करेगा?”

आखिरी वक्ता ने अपने लंबे भाषण में कहा,“हमारे इस छोटे शहर में सुंदर मंदिर बनेगा।वहाँ  धर्म-चर्चा होगी।मेरा प्रस्ताव है, उसका नाम “काउल-मंदिर” दिया जाए।”सभी ने ताली बजाकर इस प्रस्ताव का समर्थन किया।

काउल अपनी संवर्धना का उत्तर देने के लिए खड़े हो गए।लोग धीर-स्थिर मुद्रा में बैठे हुए थे मानो एक सुई गिरने की आवाज भी सुनाई पड़ जाएगी।कुछ समय के लिए वह शांत खड़े रहे। 
उन्होंने जनता का आग्रह,सम्मान,विश्वास देखा।मन-ही-मन उन्होंने जनता को प्रणाम किया।

वह कहने लगे,“शहर के भाइयों और बहनों! मैं भाषण देना नहीं जानता।पहली बार इतनी विराट जनता के सामने खड़ा हूं।यह पहला होगा या नहीं,मैं नहीं कह सकूंगा।मगर यह मेरा आखिरी भाषण है,इसमें कोई संदेह नहीं है।आज की सभा में मुझे कुछ नहीं कहना है।बस कुछ सफाई देनी है।क्षमा मांगनी है।आप लोगों ने भी एक बहुत बड़ी भूल की है।भविष्य में फिर कभी ऐसा हुआ तो देश के दुख की सीमा नहीं रहेगी।मेरी चुनावी सफलता हमारे समाज के नीति-नियम और आचार-विचार के प्रति घोर अपमान है।पंडितजी ने जो कुछ मेरे बारे में कहा,वह बिलकुल झूठ है।मैंने जो अपना झूठा प्रचार किया,शायद आपने उस पर विश्वास कर लिया कि मैं एक साधु और महान व्यक्ति हूँ।मेरा जीवन तो पाप की एक लंबी दास्तान है।  मैं शराबी हूंमैं वैश्यागामी हूँ।मैं पक्का जुआरी हूं।मैं कालाबाजारी हूँ।मैं असाधु हूँ।मैं एकदम बुरा हूं।किसी भी धर्म में मेरा विश्वास नहीं है।मेरा किसी नीति-नियम से संबंध नहीं है।आप जो देख रहे थे,ये सब मेरे चुनाव का प्रचार था।मुझे कभी भी आशा नहीं थी कि लोग इ सब बातों पर विश्वास कर लेंगे और सत्य मान बैठेंगे।”

“पंडितजी देवतुल्य है।मगर जो कुछ उन्होंने कहा,वह सही नहीं है।पहले आदमी को परखिये ,गोष्ठी को नहीं।योजना किसी त्याग से ऊंची नहीं होती है।महत्त्व दक्षता से बढ़कर नहीं होती है।यह सब केवल प्रचार की बात है।धन-दौलत का नतीजा है।यह सब मेरे और मेरे जैसे लोगों की कृतकार्य का परिणाम है।”

“मैं आप सबसे इस छल-कपट के लिए क्षमा चाहता हूं।मैं लज्जित हूं कि मैंने ऐसे कृतकार्य किएआपने जिस काउल के जिस चरित्र को सम्मान दिया है,वह काउल मैं नहीं हूँ।जब मेरा मुखौटा खुलेगा,आप मेरा असली रुप जान पाएंगे।असलियत देखकर आप सहन नहीं कर पाएंगे।आप अपने आपको माफ नहीं कर पाएंगे।सोचेंगे कितना बड़ा ठग है।आप का मन दुख-ग्लानि से भर जाएगा।जो मान-सम्मान आप मुझे आज देने आए हैं,यह सम्मान पाने की योग्यता मुझ में नहीं है।इस लायक केवल एक ही आदमी है,वह है-पंडितजी।मेरी अगर कोई खासियत है तो वह मेरे पैसे की है। ये सारी चीजें मैं पंडितजी की सेवा में अर्पित कर रहा हूं।आप लोग मुझे विदा कीजिए।चेयरमैन के पद तथा काउंसिल की सदस्यता से मेरा इस्तीफा ग्रहण करें।”

काउल ने अपने गले से माला निकालकर पंडितजी के गले में बड़े आदर के साथ पहना दी।  उन्हें प्रणाम कर कहने लगे,पंडितजी, मैं जिस दिन इसके लायक बनूंगा,उस दिन मैं इस माला को पहनने का अधिकारी हूंगा।”
जनता की ओर हाथ उठाकर उन्होंने प्रणाम किया।
नीना की ओर मुड़कर कहा, “ चलो,नीना!”
सब लोग स्तंभित,नीरव,निश्चल भाव से काउल  की तरफ देखने लगे।सामने बैठे थे मिस्टर अली,मिस्टर भाटिया और बाकी दोस्त।पार्श्व में अटेंशन-मुद्रा में खड़े थे हैं मिस्ट मुखर्जी।

पंडाल से उतर गए करबद्ध काउल।धीरे-धीरे सभा-स्थल की ओर जाने लगे।जनता खड़ी हो गई।काउल सभा-स्थल से बाहर निकलकर धीरे-धीरे अपनी गाड़ी की ओर आगे बढ़े।एक दिन पितृ-सत्य और मातृ-आदेश पर राजसिंहासन परित्याग कर मर्यादा पुरुषोत्तम आर्य श्रीरामचन्द्र  वनवास के लिए चल पड़े थे।आज हमारे काउल अपने विवेक-निर्देश पर व्यक्ति-सम्मान को बचाए रखने के लिए अपनी पद-प्रतिष्ठा छोड़कर चले गए।

गाड़ी रवाना हुई।नीना ने काउल  को बाहों में भरकर कहने लगे,ग्रेट!काउल,यू आर रियली ग्रेट!”


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