4
4.
दिन के करीब एक बजे होंगे।जब काउल आए,तब तक रेस-कोर्स में पहली दौड़ के लिए
घोड़े मैदान में आ चुके
थे।हर रेस के शुरू में छह-सात घोड़े दौड़ेंगे,उन पर जॉकी बैठकर जुआ-खिलाड़ियों को खेलने के नियम बताने के लिए
पहले छोटे मैदान में घोड़ों को घुमाते थे।चारों तरफ लकड़ी की बाद का
घेरा।इस मैदान के बीच में एक पेड़ था।उसकी छाया के नीचे घोड़ों के मालिकों के बैठने के लिए डनलप की गद्दी पेड़ के
चारों तरफ बिछाई हुई थी।घोड़ों पर नंबर लगे हुए थे।रेसिंग-बुक
में प्रत्येक घोड़े और उसके
जॉकी का नाम लिखा हुआ था। उसके मालिक का परिचय,उसका वजन और
घोड़े का छोटा-मोटा इतिहास- कौन-सा घोड़ा कितनी बार जीता है,उसका
संक्षिप्त वर्णन किया हुआ था।
मनुष्य के खून के साथ ही जुआ का जन्म हुआ
है।व्यक्ति के मौलिक
चरित्र के साथ-साथ जुआ मेल खाता है,ऐसा मनोवैज्ञानिकों का मानना है।अफ्रीका के आदिवासियों से लेकर न्यूयार्क के आधुनिक व्यक्ति पर्यंत सभी जुए के आदि होते हैं।तत्कालीन धर्म भी इस बात की छूट देता था।यहां तक कि बाइबिल में भी इसके विरुद्ध
कोई निर्देश नहीं है।प्राचीन रोम में जुआ खेला जाता था, जिसके लिए
उन्हें अपनी स्वाधीनता का भी परित्याग करना पड़ा था।कहा जाता था,हारने के बाद उन्हें दास बनना पड़ता था।चीन देश में जुए में हारने वालों के
हाथ-पांव तक काट दिए जाते थे।सूडान और पश्चिम अफ्रीका के आदिवासी लोग अपनी पत्नी और पुत्र सबको दांव पर लगा देते थे।हमारे महाभारत की भी तो यही
कहानी है।आगस्टस,नीरो और अन्य सम्राटों ने राजकोष के धनोपार्जन तथा राजमहल बनाने के लिए
लॉटरी प्रथा की शुरुआत की थी।सन 1951 में इस विषय में एक आयोग बैठा था।जिसके हिसाब से एक साल में दस करोड रुपए का जुआ केवल इंग्लैंड में
खेला गया। सन1950 के हिसाब से
पता चलता है कि एक साल में अमेरिका में केवल मशीन के जरिए 80 करोड रुपए का जुआ खेला गया।कहा जाता है कि सदैव समाज के आदमी खाप नहीं खाता।इसलिए वह भविष्य के साथ संघर्ष करता है।भय,मनोवैज्ञानिक अनिश्चितता और अस्वस्तिकर परिस्थिति से मुक्ति पाने के लिए वह संघर्ष करता है।इस प्रकार जुआ का जन्म होता है।यह ही जुआ
की भित्ति है।
इतिहास की
उसी पुरानी परंपरा का खून काउल के शरीर
में बह रहा है। इन मनोवैज्ञानिक-सूत्रों से काउल भी प्रभावित है।
दुनिया का
कोई ऐसा शहर नहीं बचा है, जहां काउल ने जुआ नहीं खेला होगा। क्या लंदन,क्या पेरिस,बर्लिन,टोक्यो या हांगकांग!उनके मत से मोंटेकार्लो जुआ खेलने के लिए सबसे बढ़िया जगह है, जहां उसकी सात्विक भाव से पूजा की जाती है।दुनियाभर के बिगड़ैल राजा-महाराजाओं
के दल, यूरोप की धनाढ्य विधवाएं,उच्छृंखल युवक-गोष्ठी इस महान संस्था के पृष्ठ-पोषक है।छोटे से शहर में विशाल गिरिजाघर की तरह एक विशाल महल नजर आता है,जहां पर कई तरह के जुए दिन-रात चलते रहते हैं।जिन
लोगों को जिंदगी में कोई खास उत्साह नजर नहीं आता है,मौंटेकार्लो उस कमी को पूरा कर देता है।वहां पर
सामाजिक समस्याओं से ऊपर उठकर मनुष्य को एक अपार्थिव जगत में पहुंचाने वाली हर प्रकार की व्यवस्थाएं हैं।
हमारे कोलकाता की घुड़दौड़ में मिस्टर केजरीवाल जैसे नवयुवक आते हैं। उनके पिता प्रत्येक भाई के लिए दो-दो लाख रुपए छोड़ गए हैं।एक भाई का आना-जाना है आडिनन्स डांस क्लब में,और दूसरे का
रेस-कोर्स में।धन-मन लगाकर एक सांस में देखते हैं,‘रॉक पावर’,’क्वीन स्ट्रीट’,’मैजिक लेडी’, ‘विजया’,’धरती का
चांद’ वगैरह घोड़ों की
दैनिक प्रगति।इनका बाप
कौन है?मां आस्ट्रेलियन या आयरिश है? किस अस्तबल में पैदा
हुए है? कौन किस
मैदान में कैसे दौड़ा था? जाड़ों में सूरज की कोमल किरणें किसे अच्छी लगती हैं?भीगी जमीन पर किसके खुरों की टॉप ठीक रहती हैं? केजरीवाल
इन सारी बातों की जानकारी रखते हैं।मद्रास में कौन कैसे दौड़ा था, दिल्ली में
किसने किसको मात दी थी- वह भी कितने फासले से! सर्दियों में कोलकाता के मैदान में किस घोड़े
ने मुंह मोड दिया था, सारा इतिहास केजरीवाल के पास मिल जाएगा।इतना ही नहीं, इन घोड़ों
के पिता अभी आस्ट्रेलिया में क्या करते हैं, उनकी मां कैसी है, उनके शरीर
में कौन-कौनसी बीमारी हुई है, सब-कुछ पता रखते हैं।केजरीवाल शनिवार की
शाम से लेकर अगले शुक्रवार की शाम तक सारा हिसाब-किताब रखते थे।तर्क-वितर्क करते,इस घोड़े का
15 पाउंड वजन जरूर
बढ़ा दिया गया है, मगर हर रेस
के बाद घोड़े की दक्षता और 20 पाउंड बढ़ती है क्योंकि वह आयरलैंड का घोडा है।कोई देसी नहीं है!और फिर अंत में वह कहते
हैं इतने वजन के
बावजूद वह अलबत्ता जीतेगा ही जीतेगा।अंक-गणित और इतिहास का मिला-जुला समापन होता।
इसके अलावा
वहां आते हैं मिस्टर जॉन जैसे एंग्लो इंडियन।जबसे यह रेस-कोर्स बना था,उस दिन से वे उसके साथ
जुड़े हुए हैं।हालांकि,तब गोरे साहब हुआ करते थे।उस समय वह साहब लोगों के साथ रेस-कोर्स जाते थे और वे उनके लिए कोई न कोई काम निकाल लेते
थे।कभी गेट पर तो कभी रेस्टोरेंट में।साहब लोग बीच-बीच में कोई पुरस्कार देते थे, हालांकि मिस्टर
जॉन उपयुक्त टिप्स दिया करते
थे।खिलाड़ियों के पास वह कई खबर पहुंचा देते थे। जैसे कि कौनसे जाकी ने किस घोड़े पर किसके जरिए कितना रुपया लगाया
है। अगर जाकी ने लगाया तो वह घोडा जरूर जी सकता है क्योंकि वह घोड़ों को दूसरों से ज्यादा अच्छी तरह पहचानता है।मिस्टर जॉन ने जब से होश संभाला है तब से लेकर आज तक कोई खेल नहीं छोड़ा है।उनके लिए वही उनकी धरती है,वही उनका घर है और वही खेल-परिसर उनकी समूची दुनिया है।खेल वाले दिन में वह सुबह-सुबह जगह
देखने जाते हैं,जहां घोड़ों की
ट्रायल होती थी। ये सारी चीजें
अख़बारों में प्रकाशित होती थी।सुबह अमुक घोड़े ने इतने समय में इतने
व्यवधानों के बावजूद भी यह रेस जीती है।इन सबसे सही निर्णय कभी नहीं हो सकता है, फिर भी कुछ न कुछ तो संकेत अवश्य मिल
जाते हैं।अपरान्ह को उनके
चांस पर अंदाज तो लगाया जा सकता है।मिस्टर जॉन अपनी खस्ताहालत के कारण खुद तो नहीं खेल
पाते हैं,मगर यह आबोहवा,मैदान,घोड़े उनकी जिंदगी के लिए बहुत कुछ खास हिस्सा हो गए थे।
मिस्टर और
मिसेज घोष का एवं मिस्टर और
मिसेज सिंह का रास्ता कुछ अलग-अलग है।वे पेंसिल-कागज लेकर हमेशा रेस-कोर्स में
घूमते रहते हैं।घोड़ों के मालिक प्रतिष्ठित ब्रोकर ‘बुकमेकर’ या फिर केजरीवाल जैसे लोगों से भेंट कर
उनके विचारों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।जिस घोड़े के पक्ष में सबसे
ज्यादा मत मिलते हैं,अखबार की भविष्यवाणी से मिलान करना उनका काम है। दोनों बैठकर लोकतान्त्रिक तरीके से
हिसाब करते
हैं कि किस घोड़े का चांस कितना परसेंट जीतने में है।उस घोड़े पर सारा पैसा नहीं लगाते हैं।एक पर विन तो दूसरे पर प्लेस लगाते हैं।जीतने पर पैसा जरूर
कम मिलता है मगर हारने पर नुकसान भी तो उतना नहीं होता।यह परिपक्व नारीत्व की दुनियादारी का नतीजा है।
सभ्य-लोगों की गैलरी
में मिस माथुर और मिस जैनी जैसी
युवतियों की संख्या भी कम नहीं होती है।उनके प्रत्येक अंग सद्य यौवन से भरे हुए
थे। उनके परिधान यौवन को अपने में आवृत्त नहीं कर पा रहा था।वे खासकर प्रोढ
धनी लोगों
के बीच में अपना परिचय देने के लिए कोशिश करती थी।निहायत कोई युवा हुआ तो उनके रूप से आकर्षित
हो जाता।वृद्ध हुए तो इन तरुणियों के प्रति
कोई स्वार्थ नहीं रखेगा।यौवन पार
किए हुए मध्यवर्ती पुरुष आमतौर ऐसी स्त्रियों की ओर आकृष्ट
होते हैं। वेअपना यौवन जाहिर करने के लिए अपना सारा पैसा लगा
देते हैं,सहायता करते हैं।बदले में नारी से उनकी मामूली सी मांग होती है।वे लोग मिस जैनी या मिस माथुर के लिए टिकट खरीद देंगे,ड्रिंक्स ला देंगे,अतिथि-सत्कार
करेंगे और अंत में उनके घर तक लिफ्ट दे देंगे।फिर्पो या मोगांबो में डिनर भी खिला सकते हैं।ठीक शिकार की तलाश में ये लोग घूमते रहते हैं।
इन सब दलों
से कुछ-कुछ लेकर मिस्टर काउल का गठन हुआ है।इनसे थोड़े अलग हैं।केजरीवाल का भी कुछ-कुछ अनुकरण करता हैं।जॉन की तरह इस वायुमंडल का नशा अभी उनकी धमनियों में कुछ मात्रा में है।घोष और सिंह की हिसाबी-किताबी बुद्धि से वह पूरी तरह मुक्त नहीं है।प्रोढ़ न होने पर भी कभी-कभी जैनी और माथुर जैसी
युवतियों के दल या बड़बाजार की बाईयों को आश्रय देते
हैं।कभी-कभी खेलने की
इच्छा न होने पर भी वहां घूम-घूमकर सरकारी दफ्तरों के नामी अधिकारियों या वकीलों को गैलरी में साथ देते हैं,प्राइवेट बार में।
मगर काउल की एक खासियत है कि वह औरों से कम ही मिलते हैं।उनमें विलक्षण इंट्यूशन या अंत:शक्ति हैं।वे अखबार देखते हैं,जाकी से समझौता करते है, हिसाब
रखते हैं, इतिहास समझते हैं, मगर इन सबको उनके अंतर की आवाज टाल देती थी।जब वह बाड़े के अंदर घोड़े को खुद देखते तो बीच-बीच में उनका मन कह देता,“देख,घोड़ा जो
चला जा रहा है,उसकी आंखें देख,उसके खुरों को देख।कंधे की
गोलाई का अंदाज लगा।उसके विजय के नशे पर गौर कर। इसके
माथे पर तो जीत का सेहरा बंधा हुआ है।यही तुम्हारी चॉइस है।इसके पीछे जाओ।पाँच
हजार,सात हजार,दस हजार।” काउल उस
वक्त बेचैन हो जाते हैं।सीने में एक पागलपन सवार हो जाता है।आंखें लाल हो जाती है।शरीर में सिहरन फैल जाती है।बुकिंग करने वाले से कहते सात नंबर घोड़े पर मेरे पाँच हजार।घंटी बजती
है।घोड़े सब चले जाते है रेस ट्रेक पर।दूरबीन से उठती हुई सफ़ेद टेप देखते हैं।सब घोड़े दौड़ना शुरू कर देते हैं।खुद
मानो घोड़े की काया में प्रवेश कर गए हो।एक के बाद एक दौड़ते चले जा रहे हैं।आखरी राउंड नजदीक आ गया। जैसे काउल सभी को पीछे छोड़कर नशे में आगे बढ़ गए
हैं।चारों ओर शोरगुल मचता है।तालियाँ बजने लगती
हैं।उसी बीच उनका घोडा जीत
गया। काउल की कमीज पसीने से भीग गया था मानो वह खुद दो हजार मीटर दौड़ कर आए हैं।उस दिन उन्होंने 25,000 जीते।
मगर कई बार
उनका भी मन धोखा दे जाता है।जितना भी घोड़े को देखने से मन में कोई स्पंदन नहीं आ पाता।पता नहीं चलता कि क्या परिणाम होगा? वह लापरवाही से बुकिंग काउंटर पर पहुंचते
हैं।जो मन में आता उस पर नंबर लगा देते हैं।कई बार हार भी जाते है,मगर कई बार जीत भी जाते हैं। उनके साथ
अचानक यह सब होता रहता है।
मजाक-मजाक में यह कहा जाता हैं कि घुड़दौड़ और क्रिकेट के सिवाय अब
कॉमनवेल्थ देशों के पास मिलने के लिए कोई भी विषय नहीं है।मगर सबसे पहले ईसा पूर्व 624 में ग्रीस देश में घुड़दौड़ शुरू हुई थी और रोम में पराकाष्ठा पर पहुंची।वर्तमान में जैसे आयरिश घोड़े की कदर होती हैं,उस समय अरबी घोड़ों की होती हैं।
सन 1174 ईस्वी में हेनेरी द्वितीय के जमाने
में यह खेल विलायत पहुंच गया। मगर इसमें बड़े-बड़े राजा ही केवल भाग ले सकते थे।रिचर्ड्स के जमाने से प्राइज के साथ खेल की शुरुआत हुई।इंग्लैंड में सोलहवीं शताब्दी में घुड़दौड़ दर्शन और व्यवसाय के रूप में प्रतिष्ठित हुई।इसके लिए विभिन्न देशों से घोड़े
आए।आज भी उनके वंशजों को रॉयल मेयर कहा जाता है।तब जॉकी बड़ी इज्जत का पद हुआ करता था।हैंडीकैप
की बात आई।घोड़े की ठीक नस्लें पैदा करने की बात उस समय तय की गई।तबसे यह प्रथा
सारी दुनिया में लागू हो गई।बुनियाद देखकर मां-बाप तय कर लिए जाते हैं और उसके अनुसार बच्चा पैदा कराया
जाता है।वे पुख्ता
दौड़ वाले घोड़े बनते हैं।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश और वर्ण के बाद सिर्फ इसी जाति में आज तक विवाह मिलन संभव हो पाया है।
जो लोग घुड़दौड़ देखने जाते हैं,उसमें उनके
लिए दुनिया की और कोई चीज उतनी महत्व नहीं रखती।अगर कोई कहता है कि तुम्हारा लड़का भयंकर बीमार है,जल्दी घर आओ, उत्तर
मिलता है-ठीक है,उसे खत्म होने दो,फिर आऊँगा। कोई कहता कि तुम्हारी बीवी का एक्सीडेंट हो गया है,अस्पताल में
है तो उत्तर मिलता-ठीक है,उसका पता दे दो,रेस समाप्त होने के बाद
पहुंच रहा हूं।दुनिया की कोई भी बात उन्हें वहां से खींचकर नहीं ले जा सकती थी।यह तो एक ऐसा नशा था,जो खेल खत्म
होने के बाद ही उतरता था।अगर कोई डेडहीट हो रही है यानी एक ही समय में गार पर दोनों घोड़ों के टॉप पड़े हैं तो कौन जीतेगा,कौन हारेगा,इस बात का
फैसला फोटो के प्रमाण से
होगा।ट्रैक की आखिरी रेखा पर क्रमशः फोटो लिए जाते थे,उसे पार करने पर ही खेल की बाजी पूरी होती थी। उस समय उत्कंठा और उत्तेजना से बढ़कर और कोई चीज नहीं होती थी।अगर एक घोडा दूसरे घोड़े के सामने से जाकर पार करता है तो यह जीत जीत नहीं होगी।इसे नियम के विरुद्ध माना जाएगा।साथ ही साथ खिलाड़ियों
या जॉकी की तरफ से आपत्ति आएगी।आपत्ति करने पर मैदान में
खंबे पर तिकोना लाल
बॉक्स लगाया जाएगा।इसके स्टूवर्ड की बैठक होगी,दस-पंद्रह मिनट में
फैसला हो जाएगा।आपत्ति युक्तिसंगत है या नहीं, इसके अनुसार फैसले की
घोषणा की जाएगी।फिर वैसे ही
एक सफेद बॉक्स तिकोना ऊपर उठेगा।इन खिलाड़ियों के लिए जीवन में इससे बड़ा क्षण और कोई नहीं होता।
कई दिनों के बाद काउल शहर में लौटे। -कोर्स पहुंचते-पहुंचते उन्हें मिस जेनी मिल गई।उसने काउल की खूब जमकर प्रशंसा
की, उनके रूप और खेल के करामत की।वह कहने लगी,“आपके बिना लंबे अरसे से एकाकी
हूँ।आज मौका
मिला है।आज पराजय का बदला लूँगी।”आज काउल उसे जरूर
जिताएंगे।काउल उस दिन खूब उत्साह में थे।लेबनान से लौटे थे।जैनी के अनुरोध को सुनकर उसे जिताने का वायदा किया।इसके अलावा,आज
जेनी जितनी सुंदर दिख रही है, कौन स्वामी विवेकानंद है,जो उसकी अवहेलना कर पाएगा।?काउल अपनी सारी बुद्धि खेलने में लगा दी। अपने लिए एक हजार और जेनी के पाँच सौ।पहला दौर समाप्त हुआ। काउल
ने जिस घोड़े पर दांव लागया था,वह बेचारा पीछे रह गया।काउल हारे,जेनी भी।
काउल ने कहा,“डियर, यह तो शुरुआत है!पहली विजय,यात्रा का शुभ-लक्षण नहीं होती। अभी तो बहुत खेल खेलने बाकी है।”
चुप खड़े हो गए दोनों उसी पेड़ के नीचे। फिर कोकाकोला पिया। दोबारा रेस के लिए घोड़े
आकर खड़े हुए।काउल ने कहा, “ जेनी! इस
बार तीन नंबर।देखना
तुम्हारे रूप की करामत। घोड़ा एक बार
तुम्हें देख ले।तुम उससे कह दो तुम उसके पीछे हो।इतने राजा-महाराजाओं की श्रद्धा के पात्र
हो,यह तुम्हारी उपेक्षा नहीं करेगा।अबकी बार
पुरानी हार को मिटाकर नया विजय-ध्वज
फहराएँगे। इस पर मेरे दो हजार और तुम्हारे पाँच सौ।जीतने पर पाओगी सोलह हजार।”
तनिक हंसते
हुए कहने लगे,“इस हफ्ते चलेंगे साइगन-हनीमून की तरह मौज-मस्ती करेंगे।”
घंटी
बजी।घोड़े दौड़े।तीन नंबर का घोडा दूसरे नंबर आया।फिर से हारे काउल और जेनी।
काउल ने
समझाया,“जेनी डियर!हिंदू-शास्त्रों
में मान्यता है कि वीर
तीसरी बार में जीतता है।विजयलक्ष्मी वीर के धैर्य और साहस की परीक्षा लेती है। इस बार अपनी बारी है।हिंदू शास्त्रों में एक का
नाम लिखा है। इस बार हम दोनों का
नाम लिपिबद्ध हो जाएगा।”
अबकी बार ‘लेडीलव’ घोड़े पर उसने पाँच हजार रुपए लगाए।मगर विजय की दिल्ली बहुत दूर थी।इस
बार भी काउल हार गया। इस पराजय से जेनी बहुत दुखी हुई।उसका उत्साह ठंडा पड़ गया।काउल ने फिर समझाया,“डार्लिंग!
इतनी जल्दी क्या हम हार मान लेंगे? मौके अभी बहुत पड़े है।धीरज रखो प्रिय।वीरभोग्य वसुंधरा।”
चौथे खेल के
लिए काउल और जेनी तैयार हुए। किन्तु पराजय का
सिलसिला समाप्त नहीं हुआ। पांचवें-छठवें
में भी वही
हाल।पराजय की चोट गहरी होती जा रही
थी।जेनी के होठों की लिपस्टिक
सुख गई थी,उसके चेहरे का रंग फीका पड़ गया था।तब तक काउल बीस हजार रुपए हार चुके थे।दोस्तों से पंद्रह हजार उधार
लिए।उसे चुकताकर फिर जितना
होगा।मौके भी कम होते जा रहे थे।काउल अपने अंदर थोड़ी सी बेचैनी अनुभव कर रहे थे।जाड़ों में दिनों में उन्हें गर्मी लग रही थी।
आंध्रप्रदेश
में जब कानून के बल पर उनकी जमींदारी खत्म हुई।बुद्धमूर्ति को हर्जाने में एक लाख रुपए मिले
थे।आंध्र में उसके दोस्तों ने कहा,“इन पैसों को बढ़ाना होगा, वरना इन पैसों से पहले वाली प्रतिष्ठा और मान-सम्मान नहीं रख
पाएंगे।आपका तो कोई उत्तराधिकारी नहीं है, जो इस दुनिया को चलाएगा? यह सब दो-चार साल में खत्म हो जाएगा।फिर अंधेरा ही अंधेरा।आपको खुद अपना भविष्य बनाना होगा।इस उम्र में
तो व्यवसाय होगा नहीं!जल्दी कमाई का एकमात्र तरीका है हॉर्सरेस,घुड़दौड़।”
मिस्टर
मूर्ति को भाग्य और जन्मपत्री में पूरा भरोसा था।साथ में भारत के विख्यात
ज्योतिष शकराचार्य थे।उनको लेकर इस घुड़दौड़ में आए हैं।कई दिनों से वह इसी दिन के
इंतजार में थे। ग्रहों का कैसा अद्भुत
मिलन था उस दिन!जीत निश्चित
थी।शंकराचार्य की ज्योतिष विद्या अमेरिका में भी प्रसिद्ध थी।उनकी मदद के लिए इस नई जगह में एक पक्के
पुराने दलाल,स्टॉक एक्सचेंज के खिलाड़ी मिस्टर चटर्जी आए थे।दोनों विचार-विमर्श करते थे,किस
घोड़े पर कितना पैसा लगाना है।मिस्टर चटर्जी का भी अपना कमीशन बंधा हुआ था।फिर पता चला कि ज्योतिषी का भी
कुछ हिस्सा बंधा था।हालांकि,यह अधर्मी और खल लोगों का दुष्प्रचार है।
छह खेलों में जब मूर्ति महाशय हारते गए,ज्योतिषी ने समझाया कि समय थोड़ा खराब हो
गया था।अब चार बजे का समय शुभ है।जो होना होगा,इसी घड़ी में हो जाएगा।सारे जीवन में यही श्रेष्ठ मुहूर्त है।ऐसा समय उनके जीवन अतीत में कभी नहीं आयाऔर भविष्य में भी कभी
नहीं आएगा।इस वक्त का अगर उचित प्रयोग नहीं किया गया तो समय हाथ से निकल जाएगा।फिर
शुरू होगा खराब समय।बुद्धमूर्ति के दोनों हाथ पकड़कर वे उसे लाना-लेजाना
कर रहे थे।बुद्ध
मूर्ति ने कहा,“शरीर कुछ भारी-भारी लग रहा है।मैं यही
प्रतीक्षा करता हूं।तुम लोग जाओ। इस समय हमें अपने सारे काम पूरे करने
होंगे।इसमें किसी भी प्रकार की देर मत करो।बाकी जो दांव लगाना है,लगा दो।”
बुद्ध अपनी आगामी विजय का हिसाबी आकलन कर रहे थे।तब तक उनकी पूंजी लगभग आधी हो गई थी।मिस्टर चटर्जी और शंकराचार्य
बाकी पैसे लेकर निकल पड़े।वृद्ध उस मैदान से थोड़ा दूर एक पेड़ की छाया में बैठते बैठते अनजाने में
नीचे गिर पड़े। सातवीं रेस के लिए घोड़े मैदान में पहुंच गए
थे।
मिस्टर काउल ने जैनी के कंधों पर हाथ रखकर घोड़ों की ओर देख रहे थे।पांच नंबर वाला घोड़ा
उधर से गुजरा।काउल को पहली बार अपने भीतर उसी अंतरनिर्देश,आत्म-दर्शन की अनुभूति हो रही थी।घोड़े
की आंखों में झाँकने लगे।उसके खुरों
की तरफ देखने लगे।अपने अंदर
फिर वही सिहरन महसूस हो रही थी।विजय की खुमारी उनकी
आँखों को लाल कर रही थी।एक दोस्त ने
आकर उनके कान में कहा,“काउल!जेनी अशुभ है।उसे साथ में रखोगे तो हार होगी।उसे छोड़ दो,फिर देखना अंतिम रेस में किस्मत कैसे चमकती है!”
जो उन्माद,प्रेरणा,अंतर-शक्ति उनके निर्दिष्ट फैसले के लिए तैयार थी,काउल उसी
में डूबे हुए थे।क्रमशः उनका यह विचार पक्का होता जा रहा था कि “रॉक-पावर” की आंखों में जीत का नशा है।यही नशा
उनकी आँखों में खिल उठा।इस बार दोनों की विजय निश्चित हैं।पाँच नंबर के घोड़े “रॉक-पावर” पर दांव लगाने का निश्चय किया।इस बार
लगाएंगे समूचे पंद्रह हजार। उनकी विजय अनिवार्य है।यह उनका अंतर-निर्देश है।इंट्यूशन सही होगा।आज
तक कभी भी इंट्यूशन खाली नहीं गया है,आज भी नहीं जाएगा।वह बुकिंग ऑफिस की तरफ बढ़ गए,पीछे से
किसी की आवाज सुनाई दी।किसी मनुष्य की
कराह।पीछे मुड़कर उन्होंने
देखा कि कोई बूढ़ा
पेड़ के नीचे गिरा हुआ कराह रहा है।
उधर मैदान में खिलाड़ी आखरी रेस के लिए बाजी लगाने व्यस्त थे। जो विजयी हुआ था वह अपना सब-कुछ दांव लगाने के लिए तैयार बैठा हुआ था।जो हार गया
था,वह समूचा जीतना चाहता था।एकग्रचित्त भाव से सभी घोड़ों की तरफ देख
रहे थे।
काउल ने कहा,“जैनी!
मुड़कर देखो उस वृद्ध को।शायद
बीमार हो गया है।फिसलकर नीचे गिर गया है।दुख पा रहा है।”
जैनी की
आंखों में नफरत के भाव नजर आ रहे थे।उपेक्षा के स्वर में उसने
कहा,“काउल!
नजर घोड़े पर रखो,वह बूढ़ा अंतिम रेस में नहीं दौड़गा।”
काउल ने कुछ समय के लिए
जेनी की तरफ देखा। फिर उसके कंधे से हाथ हटाकर कहने लगे,“मैं थोड़ा देखकर आता हूं।”
जेनी ने काउल का हाथ कसकर पकड़ा और कहा,“काउल!अपना इंट्यूशन काम में लगाओ। आज मेरा सारा दिन बर्बाद हो गया है।थोड़ी मदद
करो।तुम्हें वहां जाने
की कोई जरूरत नहीं है।”
काउल ने जेनी के हाथ से
अपना हाथ छुड़ा लिया। कहने लगे,“ कुछ समय के लिए मुझे माफ कर दो।”
उन्होंने एक बार घोड़े की तरफ देखा,दूसरी बार उस बूढ़े की तरफ।आखिरकर बूढ़े के पास चले गए।जो मित्र काउल को जेनी के बारे
में उपदेश दे
रहे थे,वे अब जेनी के जूड़े पर हाथ रखकर कहने लगे,“ जेनी जल्दी चलो!आखरी बाजी मेरे साथ और आज की पहली शाम तुम्हारे साथ। दोनों में जीत तुम्हारी है।”
काउल ने सुना,पीछे से जेनी उसे कह
रही थी, “कायर-कॉवर्ड”।
वह बंधु और जेनी साथ-साथ काउंटर की तरफ चले गए।
काउल ने देखा कि बूढ़े के मुंह से लार सहित झाग निकल रहे थे। काउल ने दोनों हाथों से
बूढ़े को उठाया।अकेले क्लब के ऑफिस के आगे ले जाकर उसे बैठाया।पानी लाकर आंखों पर छींटे मारे।कुछ समय बाद बड़ी मुश्किल से उसने अपनी आंखें खोली और कष्ट से पूछा,“कौन शंकराचार्य या चटर्जी?”
घबराहट हुई।बेचेनी हुई।काउल ने क्लब ऑफिस से फोन पर डॉक्टर को बुलाया।फिर बूढ़े की तबीयत
देखने के लिए कमरे में लौट आए।बूढ़े की आंखें तरस गई थी।शरीर निर्जीव। काउल ने बूढ़े को स्पर्श किया। बूढ़ा मर गया
था।रेसकोर्स में जनता चिल्ला रही थी।“कम ऑन,कम ऑन”
बाहर आकर उन्होने देखा तो वही पांच नंबर वाला घोडा जीत गया था।विजयी हुआ था
वही “रॉक पावर”। किन्तु उन्हें समय नहीं मिला, उस पर दांव खेलने का।वह अभिभूत हो गए थे, भूल गए थे अपने खेल की बात,भूल गए
थे अपने विजय का नशा।चाहते तो आज हार की क्षतिपूर्ति कर सकते थे इस अंतिम दौड़ में।जीत का सम्मान,ढेर सारा धन
प्राप्त कर सकते थे इस शाम को रंगीन।मगर उनके लिए बूढ़े की धँसी हुई आँखें,विवर्ण रूप,निस्तेज चेहरा,लाचार जिंदगी ज्यादा महत्त्वपूर्ण थी।
धीरे-धीरे
रेसकोर्स कंपाउंड से वह बाहर निकल आएं।जैनी और उसके दोनों साथियों से गेट पर मुलाक़ात
हुई।जेनी ने काउल से
कहा, “ डार्लिंग,चिंता मत करो,कोशिश करने पर किस्मत बदल जाती है।जीत के
लिए खेलना सीखो काउल,सेवा नहीं।गुड बाय।”
जेनी के चेहरे पर व्यंग के भाव थे।
येरूशलम में जिस दिन ईसा को क्रूस
पर चढ़ाकर उच्छृंखल पागल जनता लौट
रही थी, उनके प्रति ईसा की यही प्रार्थना थी-भगवान,उन्हें क्षमा कर दो! ये लोग नहीं जानते हैं,आज क्या कर
रहे हैं!
मन-ही-मन काउल सोचने लगे, “जेनी! सारी मानवता
की तरफ से भगवान के आगे मैं तुम्हारे खातिर क्षमा मांग लेता हूं,तुम्हारी धूर्तता के लिए,तुम्हारी उपेक्षा के लिए।”
थोड़ा हंसकर
काउल ने कहा,“गुडबाय।”
Comments
Post a Comment