2
2.
झन् न् न्
न्
सिरहाने के पास
रखे छोटे
टेबल से अचानक कोई सामान गिर गया।शायद कोई बोतल होगी,नहीं तो कांच का
गिलास होगा।टेबल-लैंप का नायलॉन पर्दा कांप उठा।गोल्ड एंब्रॉयडरी
वाला ड्रापिंग थोड़ा-सा हिल गया।दीवार पर ऑयल पेंटिंग,टेबल पर बाइबल,कोने में
रेडियोग्राम सभी हिल उठे।सुबह की निस्तब्धता
के
शांत वक्ष-स्थल पर पल भर के लिए
हल्की-सी हलचल पैदा हो गई।काउल
की आंखे खुल गई।
रात विदा
ले रही
थी।हाथ जोड़कर अनुनय-विनय करते हुए कह रही थी,“जा रही हूं,बंधु!मगर भूलना
नहीं,फिर आऊंगी शरीर
और मन की
अनुभूतियां लेकर।मेरे अंधेरे
सीने में तुम्हारी शून्यता फिर से भर दूंगी।अपने अंतिम अणुओं
से भर दूँगी तुम्हारा विक्षुब्ध हृदय।तुम्हारी आत्मा संतुष्ट होगी-तुम्हारे
शरीर को सुकून मिलेगा।”
इस आवाज के स्रोत
का पता करने के लिए मिस्टर काउल बिस्तर के
गद्दे से नीचे की ओर झुक गए। उसके नंगे शरीर पर
ओढा हुआ आवरण छाती से नीचे खिसक गया।
झनात् .... ।यह आवाज किसी वस्तु
के टकराने से पैदा हुई थी।उस आवाज को जीवन मिला और कुछ पल के लिए अपना
अस्तित्व दर्शाते हुए समय की अनंत गोद में लीन
हो गई।संगमरमर के फर्श पर बिखरी पड़े थे कांच के छोटे-छोटे
टुकड़े-अतीत की सृष्टि,प्रस्थिति और विलय के प्रमाण के
तौर पर।मिस्टर काउल सोचने लगा कि यह पल,यह कल्लोल समय के अतल गर्भ में समा गया है,जिसका पुनर्जन्म और संभव
नहीं है।इस पल के तिरोधान का प्रत्यावर्तन भी संभव नहीं है।
शायद फर्श पर कुछ व्हिस्की गिर
गई थी,चौकोर सफेद-काले
संगमरमर के चौहदी का सहारे।बिस्तर पर लेटे-लेटे अंगुली से फर्श पर
गिरे कांच के टुकड़ों और व्हिस्की को अन्यमनस्क होकर जमा कर रहे
थे।चादर खिसककर उनके पास आ गई।मिस नीरा की नींद टूट गई।आंखें खोलकर कमरे के चारों तरफ प्रस्थिति का जायजा लेने लगी।यह प्रभात,यह परिसर, यह
काउल।पिछली रात का
संक्षिप्त इतिहास उसे याद आ गया।अपने शरीर की तरफ कुछ
समय के लिए देखकर पास में पड़ी परफ्यूम से अपनी छाती पर स्प्रे
किया।करवट
बदलकर मिस्टर काउल की पीठ पर स्वयं को चिपका कर
कोमल स्वर में कहने
लगी,“डार्लिंग!”
मिस्टर काउल कांच के टुकड़ों को लेकर फर्श
पर बहती हुई व्हिस्की को रोकने के लिए बांध बना रहे थे।कांच के टुकड़ों
की तेज धार से उनकी उंगली से खून निकल कर व्हिस्की के साथ मिलकर लाल
हो जा रहा था।बीच-बीच में काँच के इस बांध के नीचे से
व्हिस्की की धारा बहकर फर्श के दूसरी तरफ जा रही
थी। बांध की सीमा को मिस्टर काउल
बढ़ाते जा रहे थे।पर्दे के भीतर से छनकर प्रभाती आलोक कमरे में
उजियारा करने लगा था।
मिस नीरा काउल
को पीछे
से कसकर आलिंगन करते हुए उसके चेहरे पर हाथ फेरते
हुए उच्च
स्वर में कहने लगी,“डार्लिंग !”
मिस्टर काउल ने शांत स्वर में
उत्तर दिया, “यस!”
“सुबह हो गई है।”
“यस।”
“तो जाने के लिए तैयार
होना पड़ेगा।”
“हूँ।”
पास वाले सोफे पर बिछे पड़े
थे उसकी नायलॉन की साड़ी,फुलानेल का ब्लाउज,सिल्क का साया
आदि।मिस्टर
काउल के ड्रेसिंग गाउन को नीचे से उठाकर मिस नीरा ने अपना शरीर ढक लिया
और प्रसाधन के लिए बाथरूम में चली गई।
काउल बांध बनाने के
इस प्रयास में आहत होते जा रहे थे।उनकी उंगली के विभिन्न जगहों से खून रिस रहा
था।व्हिस्की के स्पर्श से क्षत उंगली में हल्की-हल्की जलन हो
रही थी।हारकर उन्होंने इस काम को छोड़ दिया और
अपने शरीर पर ओढ़ी हुई चादर से उंगली को जोर से दबा दिया।किसी बच्चे
के हस्त
अंकित चित्र की तरह
खून के दाग सफेद चादर पर दिखाई दे रहे थे। अलग-अलग दिशा में
दबाकर उंगली के खून से उस चित्र को वह पूरा कर रहे थे।वह
चित्र ऐसे दिखाई दे
रहा था मानो मॉडर्न आर्ट की कोई डिजाइन हो।अंत में
उंगली का रक्त-स्राव बंद हो गया था।
टेबल लैंप के पास रखी
किताब को
उठाकर
वह बिस्तर
पर चित्त होकर लेट गए।मिस नीरा के तकिए को अपने तकिए पर रखकर उसे ऊंचा बना दिया। पीठ
के बल पर सहारा लेकर वह मार्क ट्वेन की किताब “मृत्य-लोक
की चिट्ठी” पढ़ने लगे।मृत्य-लोक
का अभिशप्त
‘शैतान’ ने स्वर्ग के माइकल और गबराल के नाम पर मनुष्य की प्रकृति और धरती की अवस्था के
बारे में वर्णन करते हुए एक चिट्ठी लिखी।इस चिट्ठी में भगवान,समाज,मनुष्य,धर्म आदि का उपहास किया
गया है,उनकी कटु समालोचना
की गई है।किताब के संपादक ने लिखा है, जीवन के अंतिम दिनों में मार्क ट्वेन का दर्शन पूर्ण
निराशावादी था।समाज और संसार के प्रति उन्हें नफरत हो गई थी।वह मनुष्य जाति को “ड़ेम्ड ह्यूमन रेस” कहा करते थे।उनके
जीवन के अंतिम काल को उनकी शारीरिक व्याधि,घोर दरिद्रता,मानसिक जंजाल ने
अंधकारमय बना दिया।सृष्टा,धर्म और मानव का उपहास करते हुए यह पुस्तक
उन्होंने लिखी थी।उनकी लड़की कलारा क्लैम ने कई दिनों तक इस किताब
को
छुपा कर रखा था। फिलहाल ही अमेरिका से
इसका प्रकाशन हुआ है।किसी अमेरिकन मित्र ने काउल
को यह पुस्तक उपहार में दी थी।
मिस नीरा बाथरुम से लौट आई
थी।ताजे खिले गुलाब की तरह वह लग रही थी।खुले
बालों को ऊपर उठाते हुए गुच्छा बनाकर नेट के भीतर उसने
सजा दिया।आंखों से काजल-रेखा बाहर थोड़ी-सी ऊपर की ओर निकल कर
अर्धचंद्र की तरह
खिंच गई थी।होठों पर गुलाबी लिपस्टिक,भरे-भरे गालों
पर ‘रोज पाउडर’ की
लालिमा,पतले ब्लाउज के
भीतर ब्रेसियर के स्ट्रैप साफ-साफ बाहर दिखाई पड़ रहे
थे।रात की तुलना में कुछ अधिक दीर्घ और
चौड़ी बनी भौहें बड़ी-बड़ी आंखों का अवगुंठन
बन रही थी।सारा शरीर इत्र से महक रहा था।काउल पढ़ रहे थे “शैतान की चिट्ठी”।जिसमें लिखा हुआ था-“यह धरती एक विचित्र, असाधारण और अचरज
भरी जगह है।यहां के आदमी पागल है,अन्य पशु भी पागल है,सारी दुनिया पागल है,खुद प्रकृति भी पागल हैं।”
“मनुष्य अगर बहुत बड़ा होता
तो भी
वह हमारे स्वर्ग के
सबसे छोटे,निम्न,हेय
देवदूत की तरह होगा और अगर साधारण होता है तो वह
अति-जघन्य,भयंकर वर्णन से
परे
होगा। इसके बावजूद भी उसका आत्मविश्वास हास्यास्पद है।वह अपने आप को
भगवान की सृष्टि का श्रेष्ठ जीव मानता है।आप विश्वास करो या न करो, वह अपनी इस बात पर विश्वास करता है।युगों-युगों
से वह यही बात
कहता आया है और सभी
इस बात को मान भी लेते हैं।एक भी आदमी ऐसा नहीं है जो उसे सुनकर उस
पर अविश्वास करें या
उसकी हंसी उड़ाएं।”
मिस नीरा पास में आकर
काउल को हिलाकर कहने लगी,“डार्लिंग!अभी तक
उठे नहीं हो?पढ़ाई बंद करो।देखो,मैं तो तैयार भी हो
गई हूँ।बहुत देर हो चुकी है। घर वाले
चिंता करते होंगे।”
काउल कुछ समय
के किताब
से आँखें उठाकर मिस नीरा की ओर
देखने लगे और कहने लगे,“मेरे कोर्ट की
पॉकेट में पर्स है,उसमें से तीन सौ
रुपए निकाल
लो।”
फिर मार्क ट्वेन की किताब पढ़ने में वह
व्यस्त हो गए।
“रात-दिन आदमी भगवान को पुकारता है।प्रार्थना करता है अपनी
सहायता के लिए,उन्नति के लिए,रक्षा के लिए।तरह-तरह
की अवास्तविक
और अतिरंजित
खुशामद भरी बातें करता है।हर रोज वह प्रताड़ित
होता है,पराजित होता है। कभी भी
उसकी आकुल प्रार्थना काम नहीं आती।फिर भी वह उस तरह की प्रार्थना करता चला जाता
है।जीने के लिए आप्राण जिजीविषा! फिर वह सोचता है,एक न एक दिन वह
स्वर्ग अवश्य पहुंचेगा।मनुष्य समग्र सृष्टि का
सबसे बड़ा निर्बोध जीव है।
प्रत्येक हीनता का
भी एक सम्मान है।इस सम्मान की कल्पना प्रताड़ना हो
सकती है या हीनता से उबरने के लिए।अगर इस सम्मान पर आंच
आती है
तो हीनता अचानक बाहर आ जाती है,ग्रंथि खुल जाती है,आदमी विचलित हो
जाता है।
मिस नीरा शायद हाड-मांस की
बनी वस्तु है।विभिन्न कमरों में विभिन्न
वक्ष-स्थलों पर रात बिताकर जीवन का पाथेय जुटाती फिरती
है।रूपवती है,अभी भी
उसकी मांसपेशियों का
सौंदर्य अत्यंत
ही आकर्षक है।उसने
देखा कि
यह रास्ता सहज
है।ऐसा नहीं कि घर-संसार बसाने की उसकी चाह नहीं
थी।उसने
तो चाहा था एक छोटा-सा घर-संसार बसाने के लिए,एक साधारण से किसी अपने व्यक्ति के साथ।थोड़ा-सा सम्मान।वह पढ़ी-लिखी
थी।कितनी साधारण थी उसकी ये इच्छाएँ! मगर इतना भी नहीं
हो पाया।खैर, आज इन बातों की
चर्चा से कोई फायदा नहीं है।वह जिस रास्ते पर चल
पड़ी है उसके अंतिम दिग्वलय तक जाना ही उसका जीवन
है।लेकिन तुम्हारा क्या अधिकार है,उसे कहने के लिए कि वह ऐसी या वैसी है।जो दिखा
रहे हो,शायद वह
सत्य हो।मगर
सच को प्रकट करने का अधिकार तुमको किसने दिया? काउल की अवहेलना
और उदासीनता
ने नीरा के जीवन की हीनता को स्पष्ट कर दिया।
नीरा मूर्तिवत वहाँ खड़ी
रही।कुछ
समय बीत गया।काउल ने अपनी किताब पर उसकी छाया
देखि।
मुंह उठाकर उसने
देखा कि नीरा वैसे ही खड़ी थी।
वह कहने लगे, “ड्राइवर अभी तक नहीं आया होगा।टैक्सी बुला देता हूं।थोड़ा इंतजार
करो।”
कुछ समय तक चुप रहने के बाद नीरा
ने कहा,“तुम्हारा नाम मुझे
मालूम नहीं है।तुम्हारा अतीत,वर्तमान के बारे में भी मैं कुछ नहीं जानती हूँ।फिर भी तुम्हारे
पास जितने कारण है मुझसे घृणा करने के लिए,मेरे पास भी उतने
ही कारण है तुम्हें हेय मानने के लिए।”
नीरा कुछ उत्तेजित हो चुकी थी।काउल को ऐसा कुछ सुनने की आशा नहीं थी। अचरज
से नीरा की ओर देखते हुए वह कहने लगा, “घृणा तो मैंने नहीं की? घृणा
करने की कोई बात भी
नहीं है।पिछली रात मुझे सब-कुछ तो मिला है।
मैं कृतघ्न नहीं हूं।इसलिए तो
यथासाध्य उपहार दे रहा हूं।कुछ और चाहिए?पर्स में होंगे।”
“ थैंक यू!जरा-सी कोशिश करते तो विदाई के पल
को सम्मानजनक
बना सकते थे।कम से कम कृतज्ञता की दृष्टि से।”
“तुम्हारा नाम क्या है ?”
“कोई जरूरत नहीं है
पूछने की।रात का पथिक।”
नीरा
ने पूछा, “तुम्हारा?”
“काउल।रमेश काउल।सुनो, संवेदनशीलता दूसरे धंधों की तरह इस धंधे में भी बाधक है।”
“तुम्हारा नाम काउल न
होकर ब्रूट होना चाहिए था।”
“बैठो।बिस्तर पर न
सही चेयर खींच लो।ब्रेकफास्ट लेकर जाना।मंगाऊँ?”
“धन्यवाद। मेरे पास इतना समय
नहीं है। इसके अलावा मेरा एक और इंगेजमेंट है।”
“अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मिस! मेरे जैसे कस्टमर को हाथ में रखने के
लिए उचित आबोहवा की सृष्टि करता।”
“तुम अनुभवी हो।एक ही स्त्री
के साथ दूसरी रात नहीं
बिताओगे,यह मैं जानती हूँ।इसके
अलावा मेरा भी कोई खास आग्रह नहीं है।बिना किसी कौतूहल
के इस भार को ढोते-फिरना कठिन हो जाता है।”
“इस बात को मानोगी, मेरे जैसे अनुभवी आदमी का सर्टिफिकेट कीमती
है। तुम्हारा
शरीर उपभोग्य
है।बैठ सकती हो, मेरे
बाथरूम से
आने तक इंतजार कर सकती हो।हम साथ-साथ जाएंगे,जहां तुम कहोगी वहाँ
मैं खुद छोड़
आऊंगा।”
“ हमारे दल के लोगों के बारे में आपको यथेष्ट ज्ञान
होगा।तुम्हें मालूम होगा, हम लोग बीच-बीच में चोरी करती
है,पर्स,वॉच,ट्रांजिस्टर।अगर
मैं इन चीजों पर हाथ साफ कर चली जाऊँ ? तुम तो मेरा पता तक नहीं जानते और नाम भी
नहीं।”
“इतना विश्वास करो।मैं पुलिस में खबर नहीं
करूंगा।कम से कम अपने स्वार्थ
के खातिर। इसके अलावा अगर कुछ नुकसान हुआ भी तो मेरा कुछ भी बिगड़ने
वाला नहीं है।जो तुम कुछ चाहती हो,बिना पूछे ले जा
सकती हो।कुछ भी इस घर की कोई भी कीमती चीज।
काउल ड्रेसिंग गाउन से अपने
नग्न शरीर को ढककर बाथरुम में चले गए।
रात के मद्धिम प्रकाश में कमरा छोटा
लग रहा था।मगर वही कमरा अब बड़ा विस्तृत दिखाई दे रहा था।नीरा
रेडियोग्राम का स्विच ऑन कर पारसी गीत का रिकॉर्ड सुनने
लगी।जो पिछली रात में रिकॉर्ड प्लेयर पर चढ़ाया गया था।पास राइटिंग टेबल पर कई
तरह की किताबें बिखरी हुई पड़ी थी।उसने
टेबल के ड्रावर को खींचकर देखा तो वहां कई नारियों के
चित्र रखे हुए थे।जापानी,एंग्लो-इंडियन, देशी स्त्रियों
के सभी
अर्द्धनग्न फोटो।फोटो के पीछे उनके नाम
लिखे हुए थे। उनमें से कुछ फोटो पर उनके अपने हस्ताक्षर किए
हुए थे।
तभी किसी ने दरवाजा
खटखटाया। नीरा ने दरवाजा खोला। सुसज्जित बेरा ने
चांदी की ट्रे में एक
अखबार,एक मैगजीन,एक टी
पॉट और दो खाली प्याले रख कर चला गया। पॉट और कप पर चीनी ड्रैगन
का चित्र बना हुआ था। ट्रे के एक कोने में गुलाब का फूल
रखा हुआ था।बेरा के सिर पर सफेद टोपी थी।जिसके
ऊपर लाल रिबन,कमर में लाल
फीता बक्कल से बंधे हुए थे। सफेद बंद गले के कोट पर पीतल के बटन चमचमा रहे थे। बेरा
ने सलाम
करते हुए पूछा,“मेम साहब!ब्रेकफास्ट?”
नीरा
ने कहा,“साहब के बाथरूम से आने तक
प्रतीक्षा करो।”
सलाम करके वह कमरे से बाहर चला गया।
काला पैंट,काला कोट,कोट की जेब में सफेद रेशमी रुमाल,काले जूते,सफेद कमीज पर लंदन
की टाई पहनकर काउल बाथरूम से सज-धज कर बाहर
निकले।ट्रै में
से गुलाब
का
फूल निकालकर कोट में टांग दिया।
नीरा
की तरह मुंह घुमा कर पूछने लगे,“ब्रेकफास्ट?”
नीरा ने कहा,“ इतनी जल्दी ब्रेकफ़ास्ट लेने की मेरी आदत
नहीं है।आप लीजिए मैं इंतजार करती हूं।”
“बिना फीस के इंतजार करोगी?” हंसकर काउल ने कहा।
“इंतजार करने की कोई फीस
नहीं लेती हूँ।यह तो मेरी जिंदगी का एक हिस्सा है।हमें तो हमेशा इंतजार करना ही पड़ता
है।” नीरा ने उत्तर दिया।
“तो फिर चलो।”
दोनों नीचे उतर आए।ड्राइवर आ चुका
था।गाड़ी में बैठ गए काउल और नीरा।
तब तक रविवार का सूरज कोलकाता की सड़क पर उजाला
फैला रहा था। पहले नीरा ने पूछा, “अब कहां जाएंगे?”
“गिरिजाघर।”
“आप क्या ईसाई हो?”
“शायद नहीं।मगर बचपन से मैं
मिशनरी स्कूल में पढ़ा हूं, चर्च का म्यूजिक
मुझे बहुत अच्छा लगता है।खासकर रविवार की सुबह का संगीत।शांत,गंभीर पियानो का
म्यूजिक।सुनो,मुझे अपनी जगह
दिखाने में कोई संकोच हो तो मुझे चर्च में छोड़ दो,फिर तुम जहां कहोगी
गाड़ी तुम्हें छोड़ आएगी।”
नीरा ने नाराज होकर कहा,“बिना किसी कारण के कड़वी बात करने में आप
माहिर है,यह मानना पड़ेगा।”
बात पूरी होते ही काउल ने उत्तर दिया,“यह भी मानना
पड़ेगा कि मैं बहुत लॉजिकल हूं।किसी काम या बातचीत में इधर-उधर की बातों का सहारा
नहीं लेता हूँ।”
“शायद आप जानते होंगे,किसी प्रतिभावान
आदमी को अपनी मर्जी
से चलाना किसी भी स्त्री के लिए संभव है।मगर किसी बेवकूफ को नियंत्रित करने में
विलक्षण स्त्री भी सफल नहीं होती है।आप में
प्रतिभावान आदमी के ऐसे ही सारे लक्षण है।बस, यही खैरियत की बात
है।”
नीरा काउल की ओर देख
रही थी।उसको नीरा की बुद्धिमानी पसंद आई।
रविवार की सुबह कोलकाता
शहर किसी
जागे
हुए कोमल,निर्विकार शिशु की
तरह लगने लगता है।
गाड़ी चर्च पहुंची।ड्राइवर ने नीरा की ओर का दरवाजा
खोला।वह नीचे उतरी। दूसरी तरफ से काउल नीचे
उतरा। नीरा ने काउल को कुछ कहने का मौका दिए बगैर अचानक पूछने
लगी,“क्या मैं अंदर जा सकती हूं?तुम्हें परिचितों के पास
अपमानित तो नहीं होना पड़ेगा?”
“ नहीं,जो मुझे जानता है,वह मुझे पूरे रूप
से जानता है।किसी के पास कोई सफाई देने की जरूरत नहीं
है।फिर मैंने कोई अन्याय तो नहीं किया!किसी के विरुद्ध कोई काम तो नहीं किया! मैंने
तुम्हें भोगा है!तुम अपनी आजीविका के लिए करती हो।”
“हां, मानती हूं बड़े लॉजिकल है आप।”
“तुम्हारी पढ़ाई कहां तक हुई है?”
“आप जैसे लोगों की भाषा समझने के लायक तो
मैं पढ़ चुकी हूं।”
“ तो चलो अंदर चलें।” यह काउल का अनुरोध था।
तब तक चर्च की
सर्विस शुरू हो चुकी थी।दोनों पीछे वाली बेंच पर बैठ गए। फादर सरमन दे रहे थे।अंत में,सबने कहा, “आमीन”।काउल और नीरा के
सिवाय सबने सिर झुका कर सम्मान प्रकट किया।चर्च की ओर से चंदा मांगा गया। काउल ने ₹50 दिए।
बड़े-बड़े खंबे,चारों ओर दीवारों पर बाइबिल
में वर्णित दृश्यों के चित्र,ईसा मसीह का क्रॉस
पर लटका हुआ शरीर,पादरी की भाषा,समवेत प्रार्थना सब-कुछ नीरा के मन पर कोमल प्रभाव
गिरा रही थी।
किसी मंदिर,मस्जिद या चर्च में वह वर्षों के
बाद पहली बार इच्छा से आई थी। वह सोचने लगी,“हम जो भी करते हैं,क्या उन सबके लिए इन पादरियों के जरिए यीशु से
क्षमा मांगेंगे?”
वह कुछ भी
समझ नहीं
पाई।समय भी कम था।ऐसे में वह क्या फैसला करती?
दोनों चर्च से निकलकर अपनी
गाड़ी में बैठे।
“ आप क्या रोज रविवार को चर्च आते हो?”
“नहीं, जिस दिन कोई और इंगेजमेंट नहीं होता है,उस दिन आता हूं, जैसे आज।” नीरा
ने ड्राइवर
को अपने घर का पता बता दिया।काउल नीरा की ओर देखते हुए
कहने लगा,“तुम्हारे इस साहस को यीशु की कृपा समझूं।”
“ लज्जा वैश्या का आभूषण
नहीं है।मगर जरा-सी देर के लिए ही सही वह थोड़ी सी इज्जत की भूखी होती है,पवित्र नहीं
होने पर भी गुप्त नारीत्व के समर्पण का प्रतिदान के तौर
पर।दुनिया
की सारी दौलत,सोना-चाँदी
उसकी क्षतिपूर्ति
नहीं कर सकती है।”
उसने नीरा से पूछा, “इस सुबह के समय अगर गंगा के किनारे घूमने जाएंगे तो
तुम्हें कोई आपत्ति है?”
नीरा
ने उत्तर दिया,“घर पहुंचाने का
अगर वादा करते हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।”
हँसते हुए काउल ने
अपनी सहमति जताई।
गाड़ी गंगा नदी की ओर मुड़ गई।
“तुमने कभी प्रेम किया है नीरा?”
“ प्रेम का शाब्दिक अर्थ तो मैं नहीं जानती। मगर
हम लोग हमेशा प्रेम करते रहते हैं-नहीं तो,कम से कम प्रेम
करने का दिखावा करते हैं।बस प्रेमी बदल जाता है,जगह बदल जाती है,समय बदल
जाता है।मगर हमारा प्रेम नहीं बदलता। ” नीरा
ने हंसते हुए कहा।
खिड़की के काँच से सड़क की ओर देख
रहे थे काउल।कुछ समय सोचने के बाद आकाश और गंगा की शांत धारा की
ओर
देखने लगे।
“नीरा,इतिहास में बहुत
कुछ चीजें ऐसी है जिस पर गर्व किया जा सकता है। कभी तुमने बुद्ध या ईसामसीह का नाम सुना है?”
“केवल नाम सुना है।”नीरा ने
उत्तर दिया।
“ जानती हो,ईसा
की मैडिलोना को?वह भी एक गणिका
थी।ईसा ने उसे स्वीकार किया था।उनके नाम पर देवालय
बने
हैं।”
“और फिर जानती हो आम्रपाली को? जिसके लिए एक दिन
बुध ने मृत्यु को भी स्वीकार किया था।उन्होंने राजा का
आमंत्रण ठुकराया और आम्रपाली के आतिथ्य
को स्वीकार किया था।उन्होंने मांस खाया
था।”
नीरा ताकती रही
काउल पर चेहरे की तरफ।
“अगर मैं ईसा या बुद्ध होता तो
तुम्हें अभी मुक्ति दे देता।”
“ न तो तुम राम हो और न ही
मैं अहिल्या। तुम न तो मुझे मुक्ति दे पाओगे और न ही मुझे मुक्ति की
चाह है।
काउल साहब!मैं
अभिशप्त नहीं हूं,व्यवसाय करती हूं।”
मैट्रिक पास करते
ही मुझे जिंदगी में संघर्ष करना पड़ा।मेरे सामने थी मेरी रोगी मां,वृद्ध बाप,दुनियादारी का बोझ।
कोलकाता का निस्व:दरिद्र जीवन। समाज की चारदीवारी के
भीतर इस
बोझ
को जिंदगी की सड़क
पर लेकर चलने के लिए मुझे किसी का सहारा नहीं मिला।स्कूल का सर्टिफिकेट लेकर मैं
लड़ने के लिए तैयार हो गई, दुख और
अभाव रूपी
दैत्य के
साथ।टाइपिस्ट,सेल्स-गर्ल, टीचर बनी।टाइपिस्ट
की कमाई बहुत मामूली थी।मगरराठौर साहब की तरफ से ढेरों उपहार मिलने लगे।
साथ ही साथ, अनेक संकेत भी। एक दिन हाथ पकड़ कर
वह
कहने लगे,“इन नाजुक उंगलियों
का स्पर्श पाकर टाइप मशीन भी धन्य हो गया। और मेरी हथेली को
उन्होंने अपने गाल
पर रख लिया।मेरे दूसरे हाथ से उनके दूसरा गाल पर थपकाने
लगे।
वहां से मैंने विदा ली।छोटे शहर की एक
स्कूल में शिक्षिका
बनी।मैनेजिंग
कमेटी के सभापति मुझसे चाहते थे कि मैं उनके मातृहीन बेटे को प्राइवेट
ट्यूशन पढ़ाऊँ। एक दिन मैंने देखा कि बेटे की जगह खुद
उसके पिता बैठे हुए थे। उन्होंने दरवाजा
बंदकर सीधे मेरे शरीर पर आक्रमण कर दिया।मैंने प्रतिरोध किया।पितृदेव
घायल हुए और मैं भी
क्षत-विक्षत।
अंत में,मैं चली गई केमिस्ट की दुकान
पर सेल्स गर्ल बनने के लिए।कस्टमर आते-जाते थे,मालिक के बिगड़े
लड़के और
उनके साथी भी आते थे। मुझे
क्लब ले
जाते थे,घुड़दौड़ देखने के लिए लेकर जाते थे,बड़ी-बड़ी होटलों
में ले जाते थे। काउल साहब! तब तक मेरा
सतीत्व
बिल्कुल अक्षत था।उनके सारे उपहार लेती थी, मगर उनकी भूख
वैसी ही रह जाती थी।बहुत
लोग
चाहते थे मेरा सम्पूर्ण शरीर। मैं इंकार करती गई।लोग क्रोधित होते चले गए।मालिक
से मेरी शिकायत की गई कि मेरे रहने से उनकी दुकान की इज्जत पर आंच
आ रही
है।अंत में, मुझे वह जगह भी
छोड़नी पड़ी।
तब मैंने समझ लिया कि
मेरे पास बस एक ही
चीज है, जिसके
द्वारा
मैं जिंदगी को सुखी बना सकती हूँ।सारी दुनिया मुझसे केवल
एक ही चीज तो चाहती
है।उसके बाद मेरा जीवन किसी गुलाब के सुगंध और सुंदरता से भर जाएगा।यह
सब-कुछ मेरे शरीर
के विनिमय के द्वारा होगा।”
“बहुत इंटरेस्टिंग!” काउल ने कहा।
नीरा ने कहना जारी रखा,“एक दिन पार्क स्ट्रीट में जर्मन एयर सर्विस
के दफ्तर के आगे में खड़ी होकर देश-विदेश के रंग-बिरंगे
चित्रदेख रही थी।वहां के लोग कितने सुंदर होते
हैं! कितनी
सुंदर पोशाकें वे पहनते हैं! मैं न्यू मार्केट जा
रही थी।सच कह रही हूँ,काउल साहब! उस महीने हम भूखा मर
रहे थे। मेरी
मां अंतिम सांसें गिन रही थी।किसी
का सहारा नहीं था।जितना संभव था,कर्ज लिया जा चुका था। किसी मित्र या परिचित को मुंह दिखाना मेरे लिए कठिन हो
रहा था।मां के लिए डॉक्टर और दवाइयों की जरूरत थी।इस अकाल मृत्यु से माँ
को बचाना
होगा।”
तनिक सांस लेकर नीरा फिर से कहने लगी।
“शाम हो रही थी।एक सज्जन अकेले-अकेले ऑफिस से घर लौट रहे थे।कुछ समय
तक मेरी
तरफ देखने लगे। ऐसा लग रहा था,जैसे वह विदेश से
लौट रहे हैं।शायद मुंबई के रहने वाले
होंगे।धीरे-धीरे वह मेरे करीब आए और कहने लगे, “हेलो!”
मैंने मजाक में उत्तर दिया,“हेलो!”
उन्होंने कहा, “मैं कोलकाता
में एकदम नया आदमी हूं।मुझे
अपनी होटल तक पहुंचाने में मदद करोगी?”
मैंने कहा,“इसमें मेरा समय
बर्बाद होगा,मुझे अगर मेहनताना
देंगे तो चलूंगी।”
उन्होंने पूछा,“कितना लोगी?”
“आपकी क्षमता के अनुसार।”
यह बात उनके अहंकार को छू गई।वह कहने लगे,“ पूरी रात मेरे पास
रहोगी तो मैं ₹200 दूंगा।”
मेरी छाती में हूक-सी उठी।तब तक मैंने कभी ₹200 नहीं देखे थे।दारिद्रय और
प्रतिष्ठा के बीच इतना पतला पर्दा होता है।अभावग्रस्त होने के कारण सावन के काले
बादलों की तरह आकार ग्रहण कर रही थी मेरी उत्कट
इच्छाएं।प्रतिशाम को जब मैं घर
पहुंचती थी, मेरी
मां व्याकुल दृष्टि
से मेरी तरफ देखती थी उनकी दवादारू के लिए।मेरी
आंखों के सामने
नाचने लगा वह दर्द भरा दृश्य। मैं कुछ ज्यादा सोच ना सकी।मैंने हामी भर ली।
मैं उस भद्र
आदमी के साथ चली गई।उसने
रास्ते में दुकान से
मुझे नई
साड़ी,प्रसाधन सामग्री और
परफ्यूम दिलाया।होटल पहुंचकर उसने कहा, “पहनो
इसे।” मुझे
सजाने में उन्होंने मदद भी की।होटल में बड़े-बड़े लोग
आए हुए
थे। सिर से पैर तक मेरा रंग साफ दिख रहा
था। उस
नीले प्रकाश में जब मैंने अपना नया रूप देखा तो सच कह रही हूं,काउल साहब!मैं
स्वयं आश्चर्यचकित हो गई थी।सिर की
केश-सज्जा,आंखों का रंग,होठों पर
लिपिस्टिक,उन्नत उरोज, नंगी कमर,उस साड़ी में मैं कुछ और ही लग
रही थी।मेरे घर का नाम था, निर्मला।
उस व्यसक आदमी ने मुझे
अंग्रेजी में पूछा,“तुम्हारा नाम क्या
है?”
मैंने भी उनकी तरह होठ दबाकर अंग्रेजी में
उत्तर दिया,“मेरा नाम मिस
नीरा है।”
उसी पल निर्मला की मौत हो गई और मिस
नीरा का जन्म हुआ।मैं अपना प्रतिबिंब उस
बड़े आईने में देखने लगी।रूप के अनुसार मेरा नाम
युक्ति-संगत लग रहा है या नहीं?मन ही मन मैं संतुष्ट हो गई और वह
महाशय भी।
वह मेरे पीछे खड़े थे।अचानक पीछे जाकर
उन्होंने मुझे अपने
एक हाथ से पकड़ लिया और दूसरे हाथ से मेरा चेहरा पीछे घुमाकर चुंबन दे
दिया।पहले तो मैंने
प्रतिवाद किया।मेरे भीतर की निर्मला जाग गई थी, वह विरोध करने लगी। मगर वह दूसरे ही
पल में मिस नीरा में बदल गई।मैंने उस बाहुबंधन को स्वीकार
किया।फिर भी मेरा सतीत्व अक्षत था।मन-ही-मन मुझे काफी यंत्रणा होने
लगी।
मैंने सोचा कि यह पाप है, स्त्री के लिए एक
कलंक है।
उस रात दस बजे के बाद मैंने देखा कि
कई लोग महिलाओं के
साथ उस होटल में पहुंच गए थे।वह महाशय दिल्ली के मशहूर व्यापारी थे।उनके
साथ डिनर
करने
के लिए
गणमान्य
व्यक्तिण वहाँ पहुंचे थे।”
सिग्नल पोस्ट के पास मोटर बंद हो गई।मिस
नीरा का बोलना बंद हो गया था। काउल उसके चेहरे की तरफ देखने
लगे।नीरा का हाथ काउल के हाथ पर पड़ा हुआ था।नीरा
गंभीर हो गई, वह कुछ भी नहीं बोल पा रही थी।
कहानी का सूत्र याद
दिलाते हुए काउल ने कहा,“हां,तो तुम
कह रही थी उस रात
डिनर पर कई लोग वहां आए हुए थे।”
“ प्रत्येक गणिका की ऐसी ही कहानी होती होगी।आपने
कई सुनी होंगी।शायद बोर हो रहे होंगे?” नीरा ने पूछा।
“नीरा! हर आदमी की जिंदगी
एक कहानी होती है,मगर तुम्हारी
जिंदगी कुछ ज्यादा ही रोमांचक है। फिर तुम्हारा वर्णन तो और भी सुंदर है।सुनाती जाओ।”
नीरा ने कहा,“अतीत के पन्ने
पलटने में कई बार
कष्ट होता है,फिर भी वह कष्ट
बहुत मधुर हुआ करता है।”
काउल ने कहा,“ऊंट जैसे खेजड़ी
के कांटे
खाता है तो उसके होठ और जीभ से खून
निकलता है,फिर भी उसे
खाने में आनंद आता है।और ज्यादा खाने लगता है।तुम्हारी वेदना
शायद कुछ इसी प्रकार की है।”
काउल ने नीरा की
हथेली को कसकर पकड़ लिया।ड्राइवर के अचानक ब्रेक लगाने
से नीरा काउल की तरफ झुक गई।
नीरा कहने लगी,“जब मैं गर्ल्स
स्कूल में थी,हमारे सामने मिस्टर
बोस रहा करते थे। उनका एक ही लड़का था।वह पब्लिक स्कूल में पढ़ता था।मेरी मां
बीच-बीच में उनके घर जाती थी,शायद कुछ पैसे लाने के लिए।बाद में मुझे पता चला कि मेरी पढ़ाई का खर्च
वह दिया करते थे।उनके घर का फर्श संगमरमर का बना हुआ था।घर
के सामने नारी की एक नग्न-मूर्ति थी।कहते हैं, उन्होंने वह
मूर्ति विदेश से मंगवाई थी।बीच-बीच में
उनकी पत्नी मुझसे कहा करती थी, ‘जब तुम्हारी पढ़ाई
पूरी हो जाएगी तो मैं तुम्हें अपने घर की दुल्हन बनाकर लाऊँगी।
’ शायद वह मजाक कर रही होगी या मेरा मन बहलाने के
लिए यह बात कह रही होगी।मगर ऐसा भी हो सकता है,यह सोचकर मन-ही-मन मैं कई बार गर्व अनुभव करती थी।स्कूल
में सहेलियों से कहती थी,’हे भगवान!यह पढ़ाई कब खत्म हो और मैं दुल्हन
बनकरउस
संगमरमर
के फर्श वाले घर में चली जाऊँ।’
मैं बहुत ही कम
उम्र में विवाह योग्य हो गई।मेरे शरीर के उभार साफ-साफ दिखाई देने
लगे।एक दिन शाम को मैं उनके घर से लौट रही थी, उनके बेटे सोमेंद्र ने मुझे उस नग्न
मूर्ति के पास अपनी बाहों में जकड़ लिया। उस
समय अंधेरा होने लगा था।
वह कहने लगा,“नीरु! मैं तुमसे प्रेम
करता हूं।मैं तुमसे विवाह करूंगा।आज रात मेरे कमरे में आ जाना।मैं
तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा।”
उस रात मैं लाज-शर्म से अधमरी-सी
हो गई।मन-ही-मन सोच
रही थी,ये
सारी बातें तो देवदास की बातें हैं।पारुल अपने देवदास
के घर जाएगी;घर-संसार,समाज सब पीछे छोडकर।अंधेरी
रात में प्रेम निवेदन
करेगी।मेरी आंखों के आगे सारे दृश्य साफ-साफ दिखाई देने लगे।
आधी रात को मैं चुपके से
अपने कमरे से बाहर
निकली।मां सोई हुई
थी।धीरे-धीरे मैंने दरवाजा खोला।मैंने देखा रास्ते
में एक पुलिस वाला खड़ा था।भय से मैं दौड़कर अंदर
चली आई।पुलिस वाले को शक हुआ कि शायद कोई चोर घुसा है? उसने दरवाजा
खटखटाया।मां उठी।मां ने देखा कि मैं कहीं
बाहर जाने के लिए सजी-धजी खड़ी हूं।रोते-रोते सारी बात मुझे मां को बतानी
पड़ी।
अगले दिन मां ने
उनकी पत्नी के सामने मेरे शादी का प्रस्ताव रखा।हंसते-हंसते
वह
लोटपोट हो गई।मैंने खुद जाकर सोमेन से पूछा तो
वह भी हंसने लगा और
कहने लगा,‘ऐसी बातें तो कॉलेज में
लड़कियां रोज ही करती है।कई लड़कियां मेरे घर आया करती है।सबसे अगर मैं विवाह करने लगा तो
किसी राजा-महाराजा की तरह घर पर एक विशाल हरम खोलना पड़ेगा।
वह मजाक और क्रूर हंसी की
आवाज आज
भी कभी-कभी मेरे कानों में गूंज उठती है।उसके बाद हमने उस घर और बस्ती को
छोड़ दिया।
कहानी और रोचक हो गई।उस रात
सोमेन भी
डिनर पर आया था।उसके साथ में एक महिला थी।शायद
उसकी पत्नी।मैंने तुरंत उस प्रौढ़ आदमी के पास जाकर कहा,’अगर कोई मेरे बारे में पूछे तो आप कह देना मैं
आपके साथ दिल्ली से
आई
हूँ।”
उन्होंने मेरी बात को बहुत अच्छे ढंग से
संभाल लिया।मैं उनकी पर्सनल सेक्रेटरी बनी।उनके मित्रों को
रिसीव करना
ही मेरा काम था।
सोमेन ने
पूछा,“लगता है,आपको मैंने कहीं
देखा है?”
मैंने होठ भींच
कर उत्तर दिया,“शायद पिछले जन्म
में हो सकता है, मैं कोलकाता में जिंदगी में पहली
बार आ रही हूँ।”
इस उत्तर का
मैंने अंग्रेजी में
पहले
से ही अच्छी
तरह से रिहर्सल कर रखा था। मैंने देखा कि वह
लगातार मेरी तरफ देखता ही जा रहा था।उसकी बातों में कोई रुचि नहीं थी।डिनर के
समय वह जान-बूझकर मेरे बगल में बैठा।बीच-बीच में अपने पैरों
से
मेरे पैरों को स्पर्श कर देता था।मैं पास में बैठी महिला को
यह बात बता देती थी।जिसके लिए वह बार-बार क्षमा मांगता था।
जब-जब मैं बाथरुम की
तरफ जाती
तो कोई न कोई बहाना बनाकर वह मेरे पीछे चला आता और
जान-बूझकर मेरे शरीर से टकरा जाता।नहीं तो,इधर-उधर की बातें
छेड़ देता।
रात को दो बजे तक वह डिनर पार्टी चलती
रही।खाना-पीना हुआ। इस हाल में अंग्रेजी नाच
हुआ।सभी
पीकर नशे में धुत थे।स्त्रियां नाच में अपना पार्टनर बदल
रही थी।मैं किसी के साथ नहीं थी।पहली बात तो मुझे
नाचना नहीं
आता
था। दूसरी बात,मुझे उन सज्जन की
इज्जत भी तो रखनी थी क्योंकि उन्होंने मुझे अपना सेक्रेटरी बनाया था। तीसरी
बात,यह माहौल मेरे लिए एकदम
नया था।मैं खड़ी-खड़ी देख रही थी,अगल-बगल ताक रही थी।हालांकि
मन में शरारत पैदा हो गई थी।मैं सोच रही थी,निर्मला की
मौत जरूरी
है।मैं
इन औरतों के बीच
मिस नीरा को अनुभव कर रही थी।
कुछ समय बाद सोमेन मुझे कोई
बहाना बनाकर दूसरे
कमरे में ले गया।मुझे अपनी दोनों बाहों में जकड़ लिया।मैंने जोर
से अपने आपको छुड़ा लिया।मेरी आंखों में तैरने
लगा वही
मजाक,वही व्यंगभरी हंसी।मुझे
क्रोध आ गया।मैंने उसके गाल पर एक जोरदार तमाचा लगाया।सोमेन के चेहरे पर एक
हिंस्र और नफरत भरी
दृष्टि दिखाई देने लगी।कोई भी स्त्री ऐसे
पुरुष की कामना नहीं करेगी।उस संगमरमर वाले घर की इच्छा मेरी
जरुर थी,मगर ऐसे मर्द की कभी
चाह नहीं रही।यह घटना मैंने उसकी पत्नी को बता दी।मैंने अपना
प्रतिशोध लिया।
मेहमान लोग जा चुके थे, मगर मैं
कहानी ‘आलिस’ की नायिका की तरह नई दुनिया में आ
गई थी।इतनी ऊंची जगह!इतना भोग-विलास!! इतनी सहजता से मुझे मिल रहा था?टाइपिस्ट की नौकरी,टीचरगिरी, दुकान का काम कितनी तकलीफदेह हुआ करते थे मेरे
लिए।फिर भी जीवन जीना दुष्कर था।अब कुछ समय के
लिए मैंने अपना रुप बदल लिया है।ऐश्वर्यपूर्ण निवास स्थान,सुंदरतम खाद्य पदार्थ,अमीर,गणमान्य
लोगों का सानिध्य-सब कुछ मेरे पास था,थोड़ा-सा मूल्यबोध बदलने की एवज में।
उस दिन मेरा
रास्ता बदल गया,मैंने अपना रूप
बदला, मैंने अपना नाम
बदला। कदम-कदम पर मैं अंधेरे खड्डे
में गिरती चली
गई।मैं वेश्या बन गई।सोमेन
आया।मैंने
अपने कमरे का फर्श संगमरमर
का बनवाया,उसकी स्त्री के जेवरों
से। मेडिकल दुकान के मालिक के
यार-दोस्त मेरे आदेश की प्रतीक्षा करने लगे। बीच-बीच में नाचकर मैं उन्हें उच्छृंखल
बना लेती हूं।कोई
मेरी ओर देखकर कहता, ‘मेरे पास रात में तुम्हारा उपभोग करने के
लिए पैसे
नहीं है।’ मैं पतिता हो गई।मगर मुझे मिला ढेर सारा पैसा,संभोग,ऐश्वर्य।कुछ भी बुरा नहीं था।कोई बंधन नहीं था।बल्कि मुझे
नारीत्व के उपभोग के सारे सुअवसर मिल रहे थे।”
“सारे सुअवसर?” काउल ने पूछा।
कुछ क्षण के लिए रुककर नीरा ने कहा,“हां,अनेक अवसर।”
उसके घर के पते पर
गाड़ी पहुंच चुकी थी।काउल ने उसके घर के आगे सीमेंट
की बनी नग्न-नारी की मूर्ति देखि। घर में फर्श सफ़ेद-काले संगमरमर से चमक
रहा था।
नीरा ने कहा, “जिंदगी की इतनी गोपनीय
बातें आपसे कर डाली।मुझसे
घृणा करने का अवसर दे रही हूँ।मुझे उसकी चिंता नहीं।मगर घर
के अंदर
चलने का अनुरोध तो कर सकती हूँ?”
काउल अंदर चले
गए।चलते
हुए पूछा, “नीरा!तुम्हारे मां-बाप
कहां है?”
नीरा ने उनका कमरा दिखाया। काउल
ने
बूढ़ी मां को प्रणाम किया।नीरा के रोगी पिता के पास कुछ
समय के
लिए बैठे।देखा,किस तरह गरीबी और
फिर अमीरी उनके व्यक्तित्व को रुद्ध कर रहा था।अनुभव किया गरीबी का दुख, ऐश्वर्य और
लज्जा के क्षत-विक्षत दाग।
बूढ़ी मां ने काउल
से कहा, “बेटे! यह अभिशप्त
जीवनहै।इससे तो मौत ही
अच्छी है।मगर क्या करें,जिंदगी जीने का लोभ!
हमें घर से बाहर
निकले हुए वर्षों गुजर गए।किसी परिचित या
मित्र से हमारा कोई संबंध नहीं है।हम इस वेश्या के मां-बाप
जो ठहरे।”
काउल सोच रहे थे, लेखक और चित्रकारों ने वेश्याओं
का इतिहास लिखा हैं। मगर उनके मां बाप- अपमान की
आग में पल-पल जलते हैं,जिनका दुख दरअसल और भी
मार्मिक होता है।उनके दुख का कोई प्रतिदान नहीं है।कोई प्रत्युत्तर
नहीं है।
कमरे में खड़े-खड़े
काउल देख रहे हैं-शिकारी के तीर से बिंधे हुए दो मरणासन्न
क्षुद्रपक्षी,असहाय।कोई समर्थन
नहीं।सारी दुनिया में हीनतम।यंत्रणा से छटपटाती उनकी आत्माएँ।
कुछ ही देर में वह कमरे से बाहर
निकले।बाहर पर्दे की आड़ में नीरा खड़ी थी। उसकी आंखें आंसुओं से नम थी।क्षमा मांगने
की मुद्रा में मानो वह अनुनय-विनय कर रही हो।काउल ने उसके दोनों
हाथ पकड़कर कहा,“नीरा! आंसू भविष्य
के पथ को धुंधला कर देते हैं।कदम निर्बल हो जाते हैं।प्रगति
रुक जाती है।”
आंसुओं
की दो बूंदें काउल के हाथ पर गिर पड़ी।नीरा अपने आप पर संयम नहीं रख पाई।उसे
काउल की गोद में शरण
लेनी पड़ी।आंसुओं की धारा बहती जा रही थी।नीरा कह रही थी, “काउल साहब! इस
नर्क से मैं मुक्ति चाहती हूं,निजात पाना
चाहती हूं।सुख,भोग-विलास के बारे
में मैंने जो कहा है,सब झूठ है,छलावा है।जिंदगी
मुझे बहुत असह्य लग रही है।यह अपमान,यह घृणा,यह जीवन अब
और सहा नहीं जाता।”
कुछ समय के
बाद काउल
ने नीरा को अपने से
अलग कर दिया।वह कहने लगे, “नीरा, कलंक को
तो माफ
किया जा सकता है,मगर असहायता का
कोई परिपूरक नहीं है।अपने पैरों पर खड़ा होना सीखो। दुनिया से मुकाबला करो।”
आँसू पोंछकर नीरा इस तरह
स्थिर खड़ी हो गई मानो वह यूनान देश की एक पत्थर की मूर्ति हो।
काउल ने वहाँ
से विदा ली।
*******
दो साल बाद काउल फिर उस
शहर में आए।हावाई जहाज से उतरकर होटल में रुकने के बाद सीधे सबसे पहले नीरा
के घर गए।उस समय शाम हो रही थी। फूलों की तरह माला की
तरह रोशनी
सड़कों
को सजा रही थी।
घर में पहुंचते ही नीरा
से मुलाक़ात हुई।उन्होंने देखा कि उसमें सौंदर्य की वह
मादकता नहीं थी। उसकी
निगाहों
में वह
कशिश नहीं थी।शांत,शुभ्र,रुपहले आंगन में नीरा तुलसी के
पौधे की
तरह प्रसाधनविहीन दिखाई दे रही थी,वैधव्य के गौरव से
उद्भासित। कुछ समय तक दोनों एक दूसरे को देखते रहे।
नीरा ने कहा,“काउल! तुम
मनुष्य नहीं महात्मा हो।”
“नीरा! तुम इसे लिख दो।मैं
टेंपलेट बना कर बाटूंगा।पहला परिणाम तो पक्का
यह होगा
कि तुम पूरी पागल हो गई हो।यह बात साबित हो जाएगी।”
“माताजी और पिताजी कहां है?” काउल ने पूछा।
“ काली मंदिर गए हैं।”
नीरा ने कहा,“काउल! जानती हूं
धन की आपके पास कोई कमी नहीं है,मगर क्यों गवाया इतना धन? इतना त्याग क्यों?क्यों अपने परिवार
को आपने इससे वंचित किया?”
काउल ने कहा,“मैं अपने मां-बाप खो चुका हूं।मैंने सोचा कि इन दोनों की पीड़ा
कुछ कम करूंगा।फिर यह जो धन है,वह भी तो कलंक
से ही पैदा हुआ है।उस
दिन तुम्हारे घर से आने के बाद ऑफिस में काला-बाजारी
का काम किया।मेरे हिस्से से मुझे कहीं अधिक पैसा
मिला। मैंने सोचा कि इस धन
पर तुम्हारे मां-बाप और तुम्हारा अधिकार है।”
वह शाम काउल को बहुत खराब लग रही
थी।उनकी
आंखों के सामने तैरने लगे दो रुग्ण,असहाय,वृद्ध शरीर।काउल ने उनमें अपने मां-बाप को याद करने का
प्रयास किया।कोई स्मृति याद नहीं हो पाई।वह सोचने लगा,इसी तरह हताशा
से उसके मां-बाप विलुप्त हो गए होंगे।काउल में माता-पिता के प्रति ममता जाग उठी।
उस शाम अपनी कमाई का एक हिस्सा काउल ने
यह लिखकर नीरा के माता-पिता के लिए भेजा।
“काउल का यह
उसके
माता-पिता के प्रति अर्घ्य,प्रणाम।इस धन से
वे अपना आगामी जीवन बिता सकते है।”
नीरा को दूसरा हिस्सा भेजा था,जिसमें लिखा था,“नीरा! अगर चाहो तो इस
धन से
तुम अपने पहले की
जिंदगी में लौट सकती हो,जिसे तुम शुद्ध और पवित्र मानती हो।अन्यथा
इसे अपने अतीत जीवन के वर्णन के लिए पुरस्कार-स्वरूप
ग्रहण कर
सकती
हो।”
नीरा ने पतित वेश्याओं के
बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल बनाई।अपने
प्रयास और दूसरों के सहयोग से उसने इस संस्थान का निर्माण किया।धन आने से नीरा को अपना खोया सम्मान फिर
से प्राप्त हो गया।
नीरा ने कहा,“आपके यहाँ क्या रीति-रिवाज है,मुझे मालूम
नहीं।हमारे यहाँ ललाट पर तिलक लगाकर भाई के
चरण-स्पर्श करते हैं,अगर
उसे कोई
आपत्ति नहीं हो।” काउल की ललाट
पर नीरा ने टीका लगाकर चरण स्पर्श किए।काउल ने नीरा
को आशीर्वाद दिया और अपनी बाहों में भर
लिया।एक छोटे बच्चे की तरह वह काउल का चेहरा देख रही
थी।काउल ने
नीरा
का बदला हुआ नया रुप देखा, ममतामयी,कोमल,शांत,पवित्र नारीत्व
के रूप में।
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